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________________ १३७ अवि भेषी सुर कहे रायजी। देख्या मुनि चरित्र जैन जती ढोंगी सबी । तिण से हम पवित्र ॥ १॥ तुम सदा रहो घर विषे । किम जाणो यह बात ॥ में बहू रह्यो । साधु विषे । जाणु सकल अवदात ॥ २॥ में तो मिथ्या न वदूं । पण नहीं तुम N/ मन परतीत ॥ अाज तो देखी आँख से । जैन जति की रीत ॥३॥ महारे बचने आसता । धारो अब. महाराय ॥ छोडो पाखण्ड जैनमत । जो अात्म सुख पाय ॥४॥ नहीं कोई इस काल में । साधु जगत् मझार ॥ धर्म नाम से जग ठगे।। । येही नप सत्य धार ॥ ५॥ॐ ॥ ढाल ११ मी ॥ जिंदवारे मेरी जान ॥ यह ॥ IN सत्य सत्य सत्य जैनधर्म है। शंका मुझे ना लगार ॥ यो पाखण्ड देखी जगत M का । मुरझा न कोइ वार ॥ सत्य ॥ १॥ अन्धकार न व्यापै रवि थकी । चन्द्र | सेन पडे ताप ॥ अमृत जेहर होवे नहीं । तैसा जिनजी अलाप ॥ सत्य ॥ २ ॥ चारों तीर्थ इण वक्त में । पाले शुद्ध जैनधर्म ॥ कर्म खपावे शिवसुख वरे । एक । येही परम धर्म ॥ सत्य ॥ ३॥ तहा मेव वाणी सर्वज्ञ की । सत्य तीनोंही तत्व ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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