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________________ ज०वि० १३५ क्रिडा बहु विध कराइरे । आप हंसे तास हंसाइ ॥ राजे० ॥ ४ ॥ एक पशु जलचर जीव मारेरे । तीक्षण शस्त्रे खेले शीका रेरे ॥ जीव तडफडे दया नहीं धारे ॥राजे०॥ ५ ॥ किताक चोरी कर धन लायारे । करे पांती वैठा एक ठा- यारे । लेने देने का झगड़ा लगाया ॥ रा०॥ ६॥ कोइ नारी रूपवन्त पाइरे। | वस्त्र भूषण तन सजाइरे । तास ऋषिवर खोले बैठाइ ॥ राजे०॥७॥ यो एकेक | कुव्यश्ने रातारे । केइ सेवे छे भेलाइ सातारे । देखी विजय आश्चर्य अति पाता ॥ रा०॥८॥ अहो सब मिल्या भृष्टाचारीरे । कुमति सुविणठी बुद्धियांरीरे ॥ कैसी । टोली मिती यह भारी ॥ रा०॥॥ रेख्या प्राचर्य दृष्टि न अायारे । ते तो M गया दीसे कोइ ठायारे । तेहथी निडर हो फन्द मचाया ॥ राजे० ॥ १० ॥ प्राते आचर्य भणी चेतास्युरे । दंड देवा के सीधा करास्यूंरे । नहीं ताणी अभी कोइने प्रकास्यु ॥ राजे० ॥ ११ ॥ जिन से जिनमार्ग नहीं लाजेरे । इनकी सुधरे आत्मज काजेरे ॥ यो विचार बहला कर्याज ॥ रा० ॥ १२ ॥ गणीवर किहां नहीं पायारे। ]
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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