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________________ ज०वि० को तुम पालसो । गुप्त देख यों पोल ॥१॥ १॥ शरल स्वभाव है म्हारो। करण न १३४. जाणूं कपट ॥ वाह्याभन्तर एक सो। न र पाय दपट ॥ २ ॥ परभव को डर ll मुझ अति सेवू न माया लगार ॥ पेखो जरा आगे बढी। बृद्ध मुनि प्राचार N॥३॥ सुण चित चमक्या महीपति । श्रावक कर धार्यो ताम। चलो देखें अगे वली। कैसे मुनि गुण धाम ॥ ४ ॥ बृक्ष छांय में छिपत सो। देखे | आगे जाय ॥ अघटित पेखी कृत्य को। णाश्चर्य प्रति चित पाय ॥ ५ ॥8॥ | ढाल ॥ १० वी ॥ चेतनजी, वारणे मत जावोजी ॥ यह०॥ राजेश्वर द्रढ | सम्यक्त्व के धारीजी। देखी देवमाया नडिग्यारी ॥ टेर ॥ एक साधुजी जूवा खेलेरे । चौक नकी दुकी डाव में लेरे । हार जीत में धन घणो देले ॥राजे० ॥ | १ ॥ एक मुनि आमिस रांधेरे । घणा मशाला युक्त सवादेरे । करे परसंस्या कर्म बान्धे ॥राजे०॥२॥ एक मदिरा सीसी ले आयारे । सा आरोगी तवही मुरIN छायारे । नाचे गावे चंग बजाया ॥ राजे० ॥२॥ एक जति रह्या वैश्या रमाइरे।।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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