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________________ ज०वि० व १३१ में साधु गृही फसाय । मतलब साधे आपनो । को जाण नहिं पायं ॥ ३॥ परिक्षा करतां गुरू भणी । जो कभी लागे पाप । तो ते मुझ ने लागसी । यो जतो चालो आप ॥ ४॥ यों अग्रह अति सुर करी । बाग में लायो राय । गुप्त रही देखाडतो । माया विमुनि अन्याय ॥ ५॥ ढाल ६ मी ॥ सुणो चन्दाजी ॥यह॥ यह० ॥ सुणो मुनिवर जी । अरजी करूं शुद्ध पालो तुम आचार ने । तुम गुणवन्त जी। छाजे नहीं है छोड़ो शीघ्र व्यभिचार ने ॥ ठेर ॥ एक मुनिवर बैठा अति नेठा । सोकर रहे वैश्या संग क्रिडा । अभक्ष खावे मेवा पेडा । सागे वणी। गया अज्ञानी जेडा ॥ सुणो ॥ १॥ यों देख राय आश्चर्य पायो । मन में रोश अधीको लायो । यो जलम किस्यो इण लगायो । हूं देवं इण ने अभी समझायो ॥ सु० ॥२॥ भूपत साधु पासे प्रायो। पण साधु जरा नहीं शरमायो।। तो भी राय तस बोलायो । यो अकृत्य किस्यो तुम लगायो ॥ सु० ॥ ३॥ यह काज अापने अघट तो। धर्म मान ऐसे हट तो । देखी मुझ कालजो फट तो।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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