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________________ १३० । १०। मुझे तो भरम भूत दरशाइ ॥ जरा ॥ १३॥ तुम साखे परिक्षा करस्यूं । जो शुद्ध देखूगा अन्दरस्युं । तो चरण में माथो धरस्युं । दिखते हैं सरीखे मणी और कांच । | मालुम होवे लगे जब अांच ॥ जरा ॥ १४ ॥ राय कहे इतनो मत तानों । जो भरे है रतन गुण ज्ञानो। दीया है तैसा ही व्याख्यानो। बोली से भेद सर्व लीजें । विशेष परिक्षा क्या कीजे ॥ जरा ॥ १५ ॥ श्रावक कहे अभी सुस्तायो। गुप्त राते इहां चल पायो। फिर प्राचार गोचार बताओ। तो | मालुम सही पड़ जासी । मानो इति बात मेरी खासी ॥ जरा ॥ १६ ॥ ऐसी | बातों सुर बनाइ । आयो सो उपाश्रय मांही। नृप निज मन्दिर यहां ताई । आगे परिक्षा दिखावे गाइ । ढाल वसु अमोल ऋषि गाइ ॥ जरा ॥ १७ ॥ दोहा ॥ जामिनी जाम जदा गाइ । सुर भूपत ढिग प्राय । कहे चालो अब बाग N में । देखण किरिया मुनिराय ॥१॥ राय कहे क्या देखिये । देखे व्याख्यान । मांय । छिद्र पे खते साहू के । पातक आत्म भराय ॥ २॥ देव कहे ये ही जाल
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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