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________________ ज०वि० १२६ . . में मुनिवर तोलेजी छत्ती त्यागी क्या करे इच्छारी ॥ को० ॥ १५ ॥ संयम निर्वाह वा तन पोषे । केइ तपस्या कर तन शोषेजी । ज्ञानी ध्यानी वैयावची उपकारी ॥ कौ० ॥ १६ ॥ खोटी दृष्टि कर नहीं देखे । नारी मात्र मा बेनकर लेखेजी । है साधुसति सच्चा ब्रह्मचारी ॥ कौ० ॥ १७॥ महासतीयों केई गुणवन्ती । सूत्रार्थ । गुरु मुख सीखंतीजी । तासो आप तिरे पर तारी ॥ कौ० ॥ १६ ॥ जे श्राविका । ज्ञान गुणवन्ती । ते केइक संयम आचरन्ती जी । केइ देवे सती सन्त ने सातारी । ॥ को० ॥ २० ॥ ज्ञान से गुण वृद्धि पावे । यों जाण मुनि पढावे सुणावे जी॥ पापी पाप धरे चित्त मझारी ॥ कौ०॥ २१ ॥ देव कहे में भी संयम पाल्यो। " वह्याभ्यान्तर भिन्न निहल्यो जी ॥ तहसे श्रावक भेष लीयो धारी ॥ कौ०॥ २२॥ | में कदापि न बोलू अठो। नहीं साधु पर में रुठो जी। जैसी देखी तैसी ऊचारी ॥ कौ० ॥ २३ ॥ जो भेला रहे सो जाणे । भोला भेदन सके पैठाणे जी । जो । । राखे शुद्ध व्यवहारी ॥ कौ०॥ २४ ॥ प्रथम परिक्षा कीजे । फिर ओलंभो मुजने
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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