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दीजेजी ॥ में कर बतावुं परिक्षारी ॥ कौ० | २५ || कोइ आने दो साधुतांइ । में देस्यूं भेद बताइजी । भूपत ते बात न धारी ॥ कौ० ॥ २६ ॥ चुपचाप ऊठ मेहले आया || नहीं वैम जरा मन लायाजी । ढाल सातमी अमोल उचारी ॥ कौ० ॥ २७ ॥ * ॥ दुहा ॥ अमर अवलोयो ज्ञान से । नृपति मन विमल ॥ चटपटी लागी चित्त में । घालूं किस विध शल्य ॥ १ ॥ तासमें ताही विचारता । श्राचार्य कीर्ती विख्यात || देवशक्ति ता अवसरे । ताही को रूप बणात ॥ २ ॥ विहार करता आय के । उतरे बाग के मांय ॥ तपसं यम ज्ञान ध्यान में । निजात्म रहे भाय ॥३॥ सुणी हर्ष्या विजय राजवी । कहे श्रावक से प्राय । चालो वंदन ऋषिवरा । श्रावक कहे ति तां ॥ ४ ॥ विन परिक्षा नहीं वंदीये । राय कहे तज वैम ॥ प्रसिद्ध यह ऋषिवरा | चाले जिनेश्वर जैम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ८ वी ॥ गफल मत रहेरे ॥ यह० ॥ जरा मत चलरे । मेरी जान जरामत चलरे || जैन जति सच्चे श्रद्ध लेना ॥ श्री जिन मत में दृढं रहणा ॥ जरा ॥ टेर ॥ चउरंगणी सेना सजवाइ । सब