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________________ সৰি १२२ । ॥ अहो ॥ १०॥ यह हेतु जिन पिता परे ॥ सुणो ॥ समण पूत्र सम जाण ॥ अहो ॥ नहीं निभे तो सो निभाववा ॥ सुणो ॥ अपवाद भाख्यो भगवान ॥अहो | ॥ ११ ॥ भेषधारी सुर किर कहे ॥ राजे ॥ लोटा घडा कूवा मांय ॥अहो॥ पाणी | के जीव असंख्य है ॥ राज ॥ सब बरोबर कैसे थाय ॥ १२ ॥ तर्क करी भूधव कहे ॥ सुणो ॥ ज्यों लाख औषधी का तेल ॥ अहो ॥ मासा तोला शेर मण । विषे ॥ सु० ॥ लाखही औषधी मेल ॥ अहो ॥ १३ ॥ अन्य हेतु वली यह है ॥ N| सु० ॥ एक दश सत सहश्र लाख ॥ अहो ॥ सब ही संख्याता सब कहे ॥ सु०॥ तैसे असंख्याता भाख ॥ अहो ॥ १४ ॥ सुर यइ श्रद्धि सबे ॥ रा०॥ पण पंचास्ति काय ॥ अहो ॥ तास आधार सब जीव ने ॥ रा०॥ चल स्थिर विकाश क्षय जाय ॥ अहो ॥ १५ ॥ तेतों दृष्टी अावे नहीं ॥ सु०॥ ते कैसी तरह से मनाय ॥ अहो ॥ नरेन्द्र कहे जिन बचन में ॥ सु० ॥ फरक पाव रति नाय ॥ अहो ॥ १६ ॥ अरुपी सो कहे सूत्रमें ॥ सुणो ॥ सो निजरे कैसे प्राय ॥ अहो ॥ पण म
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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