SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज०वि० | जो प्राय ॥ अहो ॥ तास संख्या ए जिन कही ॥ सुणो ॥ ते कमी नहीं थाय ॥ अहो ॥ ४॥ जितने जीव शिव पद लहे ॥ सुणो ॥ तितने व्यवहारी होय ॥ | अहो ॥ अव्यवहार अनन्त सदा रहे ॥ सुणो ॥ सर्वज्ञ रहे सब जोय ॥ अहो ॥ | ५ ॥ भेषधारी देवता कहे ॥ राजे ॥ साधु महाव्रत के धार ॥ अहो । तीन करण | तीन जोग से ॥ राजे ॥ जीव हिंसा परिहार ॥ अहो ॥ ६॥ करे गमनागमन नदी उतरे ॥राजे ॥ तहां निश्चय जीव हणाय ॥ अहो ॥ अाशा दी जिन एह| वी ॥ राजे ॥ विरुद्ध प्रत्यक्ष यह देखाये ॥ अहो ॥ ७ ॥ भूप कहे नहीं संकीये ॥ सुणो ॥ प्रभु मत दोय प्रकार ॥ अहो ॥ उत्सगेरु अपवाद छ ॥ सणो ॥ उत्सर्ग में यह निवार ॥ अहो ॥८॥ अपवाद को प्रायश्चित लहै ॥ सणो॥ कारण रु करण उपकार ॥ अहो ॥ अटका काम चालण कया॥ सुणो ॥ पण हिंसक आज्ञा | मधार ॥ अहो ॥६॥ जैसे पिता कहे पुत्र ने ॥ सुणो ॥ मत कर ख्याल कि तोल ॥ अहो ॥ जो न रह्यो जावै तुझथी ॥ सुणो ॥ तो एक घडी पर मत बोल
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy