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________________ ज०वि० ११५ आकर्षाई । मिल्या जयजी आइ । हुई पक्की सगाई || सं० ॥ १८ ॥ और सज्जन मिल्या सब भाइ | न्यारा २ दीना बताइ जी । सुणीयों जिन वाणी । इहायों करे सब प्राणी | बात सेन्दी लगाणी | स० १६ ॥ मति ज्ञानावरण कम थैया । जाति स्मरण ज्ञान लैया जी ॥ सुणी जैसी जाणी । प्रति ही ये हर्षाणी । द्रढ सम्यक्त्व ग्रहणी ॥ ० ॥ २० ॥ श्रावक का व्रत सब आदरीया । शभा सौगन बहु करीया जी ॥ ढाल चतुर्थी थाइ । ऋषि अमोलक गाइ । धर्म सदा सुखदा ॥ सम ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ श्री जिनजी रहे तहां लगे । सेवी विजय राजान ॥ तत्वार्थ धारण किया । निसंशय मतिमान ॥ १ ॥ जिनजी विचरे जिन पदे | तर विजय राजान || अमरी पडह बजावीयो । तीनों खण्ड के म्यान ॥ २ ॥ नवकार आवे जेहने तास माफ कीयो दाए || ज्ञान शाळा सहू स्यात कर । धर्मो न्नति मंडाण || ३ || धर्म अर्थ काम सेवता ऊपना नन्दन तीन ॥ नन्द आनन्द सुन्दर श्री । कीया धर्मार्थ प्रवीन ॥ ४ ॥ धर्मे जग मंडण करो | रहे सहू सुख
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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