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दरशण करवा न जवाइ । तो धर्म श्रवण कैसे थाइजी ॥ हे समकित सेठा रहो ११३
| घर माहे बेठा । करे अन्य से खेटा ॥ स०॥ ५ ॥ दोनों भाइ के दो दो लुगाइ। तासही धर्म समझाइरे ॥ सुसंगति मे लगाडी । धर्म ज्ञान सिखाडी । करी समकित में गाडी ॥ स०॥ ६ ॥ उन २ दोनों बाइ के दो दो सहेली । तास ते धर्म है में भेली जी ॥ ते पण होगइ शाणी । सत्य जिन मार्ग को जाणी। धर्म प्रात्म से भी जाणी ॥ स० ॥ ७॥ एकदा कोइ पाखण्डी आयो । भानु संग विवाद मचाM यो जी। तेथो कपटी पूरो ॥ जैसो सहेत को छुरो । करी चरचा कूरो ॥ स०॥
८॥ जिन बचने शंका भानू ने भाइ । पण किसी को नहीं जणाइजी ॥ नहीं परशंसे निन्दे । नहीं वन्दे निकन्दे । मन में रख्यो सन्दे ॥ स० ॥ ६ ॥ केताक काले ते विसराई । फिर जोग बण्यो तैसो आइजी। फिर शंका भराइ ॥ यों तीन
वार भराइ । गया कर्म बन्धाइ ॥ स०॥ १० ॥ एकदा जेष्ट भानुनी नारी। ऊभी । थी घर द्वारीजी ॥ तहां प्राइ मेतराणी । बोलावे सेठाणी । कोह कार्य प्रेराणी