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________________ जवि १११ आपणे नामे भोजन निपजाया । लादी लाय मुझ जरा न चखाया ॥ सु०॥ I २३ ॥ ये क्षीर खाइ कम्मर तोडाइ । दोष ने किनका स्वकर्म कमाइ ॥ सु०॥ 11 २४ ॥ ये दोनों ऐसी कर रह्या बातां । रखे संशय तुम जरा मन लाता ॥ सु०॥ २५ ॥ निधान बतावे पाडो तुम तांइ । तो सत्य ये समझ जो भाइ ॥ सु०॥ | २६ ॥ पाडे गौशाला पग थी कुचरे । खोदी देखे भानु द्रव्य निसरे ॥ १०॥२७॥ परतीत अाइ सत्य बात जणाइ । भानु संतोष्या दोनों के ताइ ॥ सु०॥ २८॥ 2. दोनों तिर्यंच मिथ्यात्वछिटकाइ । मुनि बोधे सम्यक्त्व पायाइ ॥ सु० ॥ २६ ॥ और घणा जन धर्म ने धार्या । मुनि उपकार करीने पधार्या ॥ सु० ॥३०॥ ढाल तीसरी अमोलक गाइ । सत्संगति महालाभ दाताइ ॥ सु०॥३१॥ॐ॥दोहा॥ 1 भमर भानु दोनों मिली । कर तिर्यंच की सेव ॥ खान पान वत्थ भूम से । पोषे तस अहमेव ॥ १ ॥ तीर्यच दोनों ज्ञानवन्त । पाले सम्यक्त्व शुद्ध । यथा उचित करणी करे । धर्म में प्रेरी बुद्ध ॥ २॥ आयु अन्ते अणसण करी । प्रथम स्वर्ग
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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