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ज०वि०
पूर्व भव का नेह तस जागा ॥ सु० ॥ १०॥ नरवाणी से म्हेसो उचारे। देखे ताक Iसब आश्चर्य धारे ॥ सु०॥ ११ ॥ सुणे पण पूरी समझ न पावे । भेद जाणन सबी
के मन चावे ॥ सु०॥ १२ ॥ भव्य भाग्ये श्रुत केवली अाया। देखी सर्व अति । हर्षाया ॥ सु० ॥ १३ ॥ भानु भमर लुली वंदना कीनी । शुद्ध भिक्षा उलट भाव से दीनी ॥ सु०॥ १४ ॥ फिर कहे कृपा करी प्रकाशो । अपूर्व अाज यह देखो तमासो ॥ सु०॥ १५ ॥ पूर्व ज्ञाने उपयोग लगाइ। कहे मुनि सुनो कर्म कथाइ ॥
सु० ॥ १६ ॥ पाडो पिता कुत्ति तुम माजी । जिसका आज यह श्राद्ध कियाजी ॥ | सु०॥ १७ ॥ सात भवों से प्रीति इनकी जाणो । भवोभव पाइ ऐसी हाणो ॥ सु० । ॥ १८ ॥ महा मिथ्यात्व पाया विखवादो । हुवा दुर्बल बोज तुम लादो ॥ सु०॥ १६ ॥ निजके कामे निज पीडाणो । सुणी नाम इहापो लगाणो ॥ सु० ॥ २० ॥ | अकाम कर्म लहूथैया। जाति स्मरण ज्ञान दोनों लैया ॥ सु० ॥ २१ ॥ कहे भेंसो कुत्ति नारी तांइ। धिक्कार पडो ये पुत्र कमाइ ॥ सु० ॥ २२ ॥