SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जवि विजय को । देखा जैसा कथन्त ॥ ४ ॥ करणी भरणी विश्वमे । ले दे सके कोइ नाय ॥ प्रत्यक्ष देखीये पारखा । नृपादि सर्व सभाय ॥ ५ ॥ॐ ॥ ढाल ३ री॥ जय जिनराया २ ॥ यह० ॥ सुणो सुणो भाइ २ । पूर्व भवों की सुकृत्य कमाइ ॥ सुणो ॥ ॥ भूतिलकपुर नगर भलेरो । धन धान्य ऋद्धि सुख घणेरो ॥ सुणो 2॥१॥अरी जय भूप रुधारणी राणी । बुद्धि विजय प्रधान गुण खाणी ॥१०॥ २॥ तहां रहे ऋद्धिवन्त व्यापारी । भानु भमर नामे भाग्य धारी ॥ सु०॥३॥ AN श्राद्ध पक्ष पर्व एकदा आया। जीत व्यवहारे भुक्त निपाया ॥ सु०॥ ४ ॥ तात । | तिथी होती ते दीहाडे । मित्र स्वजन भिक्षुक जीमाडे ॥ सु० ॥ ५॥ क्षीर पुरी रसवति जीमावे । तब श्वानी एक तहां चल पावे ॥ सु०॥६॥ परमानन्दो भाजN ने मुख डाला । देखा दोनों भाइ शेशे हुवा काला ॥ सु०॥७॥ जेष्टिक सजोर । कम्मरे मारी । धरणी पडी मूर्छित तेवारी ॥ सु०॥ ८॥ तब एक भेंसो दोड तहां आयो । दुर्बल थाक भूखे घबरायो ॥ सु० ॥ ६ ॥ पाडो कुत्ती दोनों रोने लागा।
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy