SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ জৰি| लेइ । काम पुरे चाल्यारी ॥ सु० ॥ १४ ॥ सुणी विजयजी अति हर्षाया । शोभा । सर्व सजारी ॥ सु०॥ १५ ॥ सन्मुख अाइ भाइ बधाइ । पुर प्रवेश करारी ॥ सु०। N॥ १६ ॥ एकही स्थान गुलतान प्रेमे हो । रहे सुखे स्वेच्छाचारी ॥ सु० ॥ १७ ॥ यथा उचित काज करे उमंगे। राज भोग सम्बदारी ॥ सु० ॥ १८ ॥ बात विनोदे | एकदा चोजे । अापस मांहे उचारी ॥ सु० ॥ १६ ॥ निर्थक बैठा काल जाय यों। करां कछु नामनारी ॥ सु० ॥ २० ॥ ज्यों बल ऋद्धि पाइ प्रसिद्ध होवे । छटा देखां विविध प्रकारी ॥ सु० ॥ २१ ॥ दिग विजय करने उमंगाना। करी सब फोज तैयारी ॥ सु० ॥ २२ ॥ रोहणी प्रज्ञाप्ति आदि विद्या । साधी शीघ्र आवे काममारी ॥ सु० ॥ २३ ॥ मणी औषधी लीनी साथे । कसर न रखी जान मारी ॥ सु० ॥२४॥ महा ऋद्धि महा युति महा बल संग। चले नगारा घोरारी॥सु०॥२५॥ अनुक्रमे सब राय वस्य कर्ता । शक्ति से भक्ति वृत्तारी ॥ सु० ॥ २६ ॥ गंग सिन्धु खण्ड दोनों साध्या । वैताब्य लग मही सारी ॥ सु० ॥ २७ ॥ तृप्त्या मन दोनों
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy