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बंधव का । त्रिखण्डे आण फिरारी ॥ सु० ॥ २८ ॥ नाना विधी ऋद्धि सिद्धी ले । पाछा सहु पलट्यारी ॥ सु० ॥ २६ ॥ उत्सवे प्राया काम पुरे सहू । सहश्र सोले राय परवारी ॥ ० ॥ ३० ॥ कामपुर का नाम बदल कर । विजयपुर नाम स्थाप्यारी ॥ सु० ॥ ३१ ॥ सब नृपत करीया विदा तब । यथा योग रीति सतकारी सु० ॥ ३२ ॥ हरी हलधर सी जोड दोनों की | कीर्ती जग विस्तारी ॥ सु० ॥ ३३ ॥ यह पुण्य कथा दोनों की गाइ । अब कहूं धर्म कथारी ॥ सु० ॥ ३४ ॥ उत्तरार्ध अधिकार प्रथम ढाल | संक्षेप अमोल उचारी ॥ सु० ॥ ३५ ॥ * ॥ दोहा ॥ ते काले मही मण्डले । गुण कर ऋषि सर्वज्ञ || लाभ स्थानक सो विचरते । तार ते जीवों बहु अज्ञ ॥ १ ॥ भव्य पुण्योदय यवीया । विजयपुरी के बहार ॥ उतरे वनपाल रजा लइ । विजय उद्यान मझार ॥ २ ॥ माली हर्षी सज हुइ । नृपति सभा में आय । अंजिल युत बधाइ दे । ये सर्वज्ञ महाराय ॥ ३ ॥ नृपादि सु आन्दिया । सिंहास से उतर ॥ तहां से वंदन करी मुनि भी । प्रेमोत्सुक