SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज०वि० १०२ टेर ॥ प्रात समय श्री विजय भूपति । करी शृंगार शोभारी ॥ सु० ॥ १ ॥ प्रेमोत्सुक विनययुत कहे जय से । कामपुरे रहवा हुइ इच्छारी ॥ सु० ॥ २ ॥ इच्छा होवे सो हुकम फरमावो । हूं इच्छु आज्ञा तुमारी ॥ सु० ॥ ३ ॥ जाण चातुर तस मधुरा वदे जय । कीजे जो तुमे सुखकारी ॥ सु० ॥ ४ ॥ सुणी हर्षाया लस्कर सजाया । खेचर भूचर तेही वारी || सु० ॥ ५ ॥ बन्ध्वादि सब जन ने संतोष्या । साथ लीनी तीनों नारी ॥ सु० ॥ ६ ॥ शुभ मुहूर्त प्रयाण कीया सब ! सुखे मुकाम करतारी ॥ सु० ॥ ७ ॥ श्राया कामपुर ढिग जाणी प्रजा । हर्षित हुइ अपारी ॥ सु० ॥ ८ ॥ पुर सिणगारा स्वर्गपुरी सम | आये सन्मुख सज थारी ॥ सु० ॥ ६ ॥ लेगये बधाइ विजय भूप तांइ । मोतीयन मेह बर्षारी ॥ सु० ॥ १० ॥ सपरिवारे सुखे रहे विजयजी | कामही पुर के मझारी ॥ सु० ॥ ११ ॥ बन्धु वियोग खटके जयजी चित्त । मिलण मन उमंगारी ॥ सु० ॥ १२ ॥ नयधीर को राज संभलाया । दीनी सब मुक्त्यारी ॥ सु० ॥ १३ ॥ निज परिवार सम्पति सर्व
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy