SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज०वि० बी पाई । मुढ मुरजाणो हो ॥ ला०॥ २॥ वणी वक्ते जो चेते सुधारे । सामग्री लेखे लगावे हो ॥ तो जालभ दुःख क्षीण में गमाइ । अक्षयानन्द पावे हो ॥ ला॥ ५३॥ इत्यादि उपदेश सुणी। सहु सभा अति हर्षाइ हो ॥ सम्यक्त्व व्रत यथा ।। शक्ति प्राचरी । निज स्थान प्राइहो ॥ लावो ॥ ४॥ संवेगे भीना धर्म राजा। कर जोड़ी करे अरजी हो। राज पुत्र न देइ बासुं । संयम लेवा मरजी हो । | ॥ ला०॥ ५ ॥ यथा सुख करो मुनि फरमावे । धर्म में ढील न कीजो हो । वंदी | । गुरु नृप राज में आया । धर्मे मन भीजो हो ॥ ला० ॥ ६ ॥ जय विजय || जय को कहे बोलाइ । राज ये तुम संभारो हो ॥ तुम सम सुपुत्र में पायो । करूं * सुधारा हो ॥ ला०॥७॥ दोनों कहे अाप पुण्य पसाये । राज सम्पत हम पाया | हो ॥ यो राज देवो जयधीर ने । होवे मा चहाया हो ॥ ला०॥८॥ तब नृप । तीनों राणी बोलाइ । वैराग्य बात जणाइ हो । जन्म सुधारूं वणी वक्त । तुम | इच्छा कांइ हो ॥ ला०॥६॥ प्रश्नोत्तर बहूता हुवा नन्तर । तीनो राण्या वैरागी
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy