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________________ ज०वि०11 ३० * * हुइये छबीस मी ढाल हो ॥ पभणेहो पभणे ऋषि अमोल का हो। पुण्ये सुख | विशाल हो ॥ ह० ॥ २१ ॥ * ॥ दोहा ॥ तिण अवसर भूमंडले । चारित्र चूड अणगार ॥ विचरे बहू मुनिवर संगे। करता परम उपकार ॥ १॥ नन्दीपुर के उद्यान में । समोसर्या महाराज ॥ हा नृपादि सुणी । ज्यों मिली समुद्रे जहाज ॥२॥ हुकम कियो सब परिवार को। चालो सुणन व्याख्यान । सेना आदि सामग्री सह । संग ले चले राजान ॥३॥ पुरजन बहू उत्सहा धर । यथा योग्य सज होय । आये विधी से वंदीये । उरे दर्श अमी लोए ॥ ४॥ परिषद बैठी भराय के वाणी सुणन उमंगाय ॥ सर्व जीवो हित कारणे । मुनी सबोध फरमाय ॥५॥ ढाल २७ वी चेतन चेतोरे दश बोल ॥ यह ॥ लावो लेवो हो भव्य जीवों । अवसर दुल्लभ पाया हो ॥ लावो ॥ टेर ॥ निर्वाण साधक मानव देही । पाया तेही साधो हो ॥ धर्माराधन सूत्र सुण्या । श्रधी ने अाराधो हो । ला०॥ १॥ पुद्गल स्वभाव पूरणोगलणो । मेघाडम्बर सो जाणो हो । क्षीण भंगूर या साहे
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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