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________________ ज०वि० kणम्या राणीया संग लेहो । विरह दुःख कीया नाश हो ॥ ह०॥ १४ ॥ पूत्रज हो । | पुत्र सपूता देखता हो । जननी अति सुख पाय हो ॥ प्राशीर हो आशीरवादे । तोपीया जी । हृदय सहू ने लगा यहां ॥ ह० ॥ १५ ॥ दीधा हो दीधा मेहल श्रेय रहवाजी। सहू सुख सामग्री सजाय हो॥परिवर्या हो परिवर्या सब परिवारथी हो। दोनों रहे सुख माय हो ॥ ह० ॥ १६ ॥ जोइहो जोइ रचना कुमर की हो। श्रीमति मन मुरझाय हो॥आखीर हो आखीर राज वीये ही हुवा हो । मुझ व्यर्थ गयो उपाय हो ॥ १७ ॥ होतब हो होतब कौण टाली सके हो । पुण्यात्म सुख पाय हो ॥ यों जाणी हो यों जाणी सुस्ती रही हो। मनही मन समजाय हो ॥ह० ॥ १८ ॥ कुमरजी हो कुमरजी मणीद्र भाव थी हो । साधे इष्ट सब काम हो ॥तोष हो तोषे 12 सब सज्जन भणी हो । पूरी इच्छित हाम हो॥ ४० ॥ १६ ॥ जावे हो जावे गगने IN उडी करीजी। करे सहू राज संभाल हो। रहवे हो रहवे पिता की छांह में हो। V सदाचित उजमाल हो ॥ ह० ॥ २०॥ विलसे हो विलसे सुख स्वर्ग समा हो ॥
SR No.600301
Book TitleSamyktotsav Jaysenam Vijaysen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRupchandji Chagniramji Sancheti
Publication Year
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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