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भावा- विरोधाभास अलंकार द्वारा जिनेश्वर का स्वरूप - १) सर्व जगत के प्राणियों के रक्षक है जिनेश्वर ! भाप विश्व के स्वामी કમાણુ होते हुए भी दुर्गत-दरिद्र है। यहां विश्व के स्वामी होते हुए दरिद्र बताने में विरोधाभास हैं। इसे दूर करने के लिये दुर्गत - માિર
का पर्व 'कष्टपूर्वक नाने जा सकने योग्य है।-किया जाए। २) इस प्रकार हे ईशभाप अक्षर के स्वभाव वाले होते हुए भी પહાય
मलिपि-लिपिरहित अर्थात् अक्षररहित है। इस अर्थ में भी विरोध है। इसे दूर करने के लिये अक्षर अर्थात् मोक्ष के स्वभाव वाले पूनविपि
और भलिपि अर्थात् कर्म के लेपसे रहित भाप है- ऐसा अर्थ किया जाए। ३) आप अज्ञान वाले होते हुए भी भापमें विश्व को प्रकाशित करने के कारण रूप केवलज्ञान के दर्शन होते है। इस अर्थ में भी विरोध है। उसे दूर करने के लिये अज्ञान्-अज्ञानी जनों को और अवति अर्थात २६ण करने गले आपमें केवलज्ञान के दर्शन होते हैं - ऐसा अर्थ किया जाए ॥ (३०) पत्र- ॐ ही अई नमो जिणाणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जो* अगराणं, मम शुभाशुभं दर्शय दर्शय ॐ ही कर्णपिशाचिनी मुण्डे स्वाहा । १२ अक्षरी ॥ . ॐ ही अर्ह अद्भूत गुणविराजितरूपाय श्री जिनाय नमः । २२ MAN ॥ *la - ॐ ही
अई णमो भद्दाबलाए। 1100- ॐ ही श्री क्ली लूँ प्रौहूँ नमः स्वाहा । ११ २०६ ॐ....परम....अवन्ति.... पाना २२३ नागने मोबी (गाजी भाजी) अट पूon on५. (२८) प्रभु! तुम मुखभिगनाही, पयन मनायर यस्तिहीन तुगनाथ मनाय-भुसा, निन थे પ્રભુતા કિમ પાઇ. પ્રભુ૧ યોગી અગી ભોગી અભોગી, વિષયરહિત બહુ વિષયી ભોગી; અક્ષરગતિ ને.
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