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________________ *॥१४ 1 - 0 । अहिंसा-प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः ॥२-३५॥ सत्य प्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम् ॥२-३६॥ * ताम* अस्तेय-प्रतिष्ठायां सर्व-रत्नोपस्थानम् ॥२-३७॥ ब्रह्मचर्य - प्रतिष्ठायां वीर्य - लाभः ॥२-३८॥ 2 अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथंता-संबोधः ॥२-३९॥ भावार्थ :- समवसरण में अतिशय का वर्णन :- हे जिनेन्द्र ! पूर्व कथनानुसार धर्मापदेश के समय भाषकी विभूति जैसी होती है वैसी अन्य देवों की नहीं होती क्योंकि सूर्य की कांति जिस प्रकार अंधकार का नाश करती है उसी प्रकार विकस्वर ग्रहों का समूह मी अंधकार का नाश कहां से कर सकता है ! अर्थात् नहीं कर सकता ॥३३॥ * * ........ पृत 33 Mi नीति viavथु छ है - चतुस्त्रिंशदतिशया यथा-स्वेदमलरोगमुक्तं सद्गन्ध रूपयुक्तं वपुः १, पद्मगन्धः श्वासः २, रुधिरमांसौ क्षीरधाराधवलौ सुरभी च ३, आहारनीहारा-* वदृश्यौ ४ चैते जन्मभवाश्चत्वारः । योजनमिते भूप्रदेशे नरतिर्यक्सुरकोटाकोटेरवस्थानं १, चतुःक्रोशनादिनी सर्वभाषानुवादिनी भगवद्वाणी २, पृष्ठे भामण्डलं ३, क्रोशपञ्चशतीमिते क्षेत्रो न दुर्भिक्षं ४, न रोगाः ५, न वैरं ६, नेतयः ७, न मारिः ८, नातिवर्षणं ९, नावर्षणं १०, न स्वचक्रपरचक्रजं भयं ११ एते चैकादश केवलोत्पचेरनन्तरं कर्मक्षयोत्थाः। गमने तीर्थकृत्पुरो . * धर्मचकं १, चामरयुगं २, पादपीठयुतं मणिमयसिंहासनं ३, छत्रत्रयं ४, रत्नखचितो महेन्द्रध्वजः ५, * चरणन्यासे नवहेमपद्मानि ६, प्राकारत्रयं ७, चतुर्मुखरचना ८, चैत्यवृक्षः ९, अधोमुखतया र
SR No.600292
Book TitleBhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharsuri
PublisherAdinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi
Publication Year
Total Pages322
LanguageGujarati
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size9 MB
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