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________________ आवश्यकनिक्षेपाः C आवश्यक चूणी श्रुतस्कंधे ॥७८॥ KARACAEXE URRECRUSSROCALCHOKA | जति सुयणाणेण अधिगारो तो उद्देसादीणि एयस्स पवत्तंति, तो किं अंगपविट्ठस्स अंगबाहिरस्स ?, दोण्हवि, इमं पुण पट्ठवणं | पडुच्च अंगवाहिरस्स, जति अंगबाहिरस्स तो किं आवस्सगस्स आयस्सगवतिरित्तस्सी,दोण्हवि, इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च आवस्सगस्स अणुतोगो, आवस्सगन्नं किं अंग अंगाई सुअक्खंधो सुयखंधा अज्झयणं अज्झयणाई उद्देसो उद्देसा ?, आवस्सगं णं णो अंग | णो अंगाई सुयक्खंधो णो सुयक्खंधा णो अज्झयणं अज्झयणा णो उद्देसो णो उद्देसा, तम्हा आवस्सगं णिक्खिविस्सामि सुर्य | णिक्खिविस्सामि खधं णिक्खिविस्सामि । से किं तं आवस्सयं, आवस्सगं समासतो चउविहं-णाम ठवणा० दब्ब० भाव०, णामावस्सयं जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा आवस्सएत्ति णामं कीरति, से तं णामावस्सगं । से किं तं ठवणावस्सगं', २ जनं कठकम्मे वा पोत्थकम्मे वा | सम्भावओ असम्भावओ वा आवस्सएत्ति ठवणा ठप्पति सेत्तं ठवणावस्सगं । से किं तं दव्वावस्सगं ?, दवावस्सगं दुविहं, तंजहा आगमओ य णोआगमओ य, आगमओ जस्स णं आवस्सएतिपदं सिक्खितं ठितं इच्चादि, सिक्खितं नाम जं अंतं पत्तं, ठितं णाम जं से ठितं हियये, जितं नाम जं मूले घेसूण अग्गं पावेति, मितं णाम जं अक्खरेहि पदेहिं सिलोगेहिं मितं-एत्तियाई ताई, परिजितं नाम जं मूलाओ अग्ग पावेति अग्गाओ य मूलं पावेति, णामसमं णाम जहा अप्पणो णामं एवं तंपि अज्झयण, घोससमं उदत्तअनुदत्तस्वरितकंपितद्रुतविलंबितविश्लिष्टापेक्षस्वरनियतं, उच्चरुदात्तं जहा उप्पति वा भूएत्ति वा, अणुदत्त उप्पन्नेति वा भूएति वा, सयाहारे उप्पन्नभूयपरिणया, हीणक्खरे उदाहरणं-दव्ये अगारीए पुत्तस्स ओसहं ऊणं दित्तं, भावे विज्जाहरो, 'रायगिहे' गाहा० अच्चक्खर उदाहरणं-दब्वे तहेव अगारी, अहिए भावे 'जो जह बढ़ती०' गाहा, अहवा-'चंदगुत्ता' गाहा। ॥ ७८ कर
SR No.600290
Book TitleAavashyak Sutram Purv Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages620
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size13 MB
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