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________________ नमस्कार वा ओमुक्कआभरणाओ सव्वासि छायं हरंति, से ताओ दट्टणं चिंतेति-जदि भट्टारएणं ममायरिएण एरिसियाओ मुक्काओ 81 परिणामिव्याख्यायां किमंग पुण मज्झ मंदभग्गस्स असंताणं परिच्चइयव्वयाणंति णिवेगमावण्णो, आलोइय पडिक्कतो थिरो' जातो। धणदत्तो ॥५६०11 सुसुमाए परिणामेति- जदि एतं ण खामो तो अंतरा मरामोत्ति ॥ सावओ सावयवयंसियाए मुच्छितो, तीसे परिणामो जातोमा अट्टवसट्टो मरिहिति, तो णरएसु वा उववज्जिहिति, संसारं हिंडिहिति, तीसे आभरणेहिं विणीतो, संवेगो, कहणं च ॥ | अमच्चोत्ति वरधणुगपिया जतुघरे कते चिंतति-एस कुमारो मारितो होहिति, कहिंपि रक्खिज्जतित्ति सुरंगाए णीणिओ, पलातो, अण्णे भणंति- एगो राया देवी से अतिपिया कालगता, सो य मुद्धो, सो तीए वियोगदक्खितो न सरीरहितिं करेति, मंतीहिं भणितो-देव ! एरिसी संसारट्ठितित्ति, किं कीरतु , सो भणति- नाहं देवीए ठिति अकरतीए करेमि, मंतीहिं परिचिंतियं-ण अण्णो उवाओत्ति, पच्छा भणितं- देव ! सग्गं गता, तं तत्थ ठिताए चेव से सव्वं पेसिज्जतु, लद्धकयदेवी हितिए पच्छा करेज्जसुत्ति, रण्णा पडिसुतं, मातिट्ठाणेण एगो पेसितो, रणो आगंतूण साहति-कता सरीरद्विती देवीए, दापच्छा राया करेति, एवं पतिदिणं करेंताण कालो वच्चति, देवीपेसणववदेसेण वत्थं कडिसुत्तगादि खज्जति, एगेण चिंतियं-अहंपि | खतिं करेमि, पच्छा राया दिट्ठो, तेण भणित- कुतो तुमंति ?, सो भणति- देव ! सग्गातो, रण्णा भणितं-देवी दिट्ठत्ति ?, ॥५६०॥ सो भणति तीए चेव पेसितो कडिसुत्तयादिनिमित्तंति, दावितं से जहिच्छितं, किंपि न संपडति, रण्णा भाणतं- कदा गमिस्सति ?, तेण भणित- कल्लं, रण्णा भणिय-कल्लं ते संपाडिस्सं, मंती आदिट्ठो- सिग्धं संपाडेह, तेहिं चिंतियं- विणहूँ | कज्ज, को एत्थ उवाओऽत्थि ?, विमण्णा, एगेण भणिय-धीरा होह, अहं भलिस्सामि, तेणं तं संपाडेतृण राया भणितो LADOOLCANCERNARY
SR No.600290
Book TitleAavashyak Sutram Purv Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages620
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size13 MB
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