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________________ श्री आवश्यक चूर्णौ उपोद्घात निर्युक्तौ ॥४०५॥ णत्थि, जदि जाणह उस्सरंति संजमगुणा तो भुज्जतु, अह जाणह नवि तो भत्तं पञ्चवक्खामो, ताहे ते भांति किं एरिसण विज्जापिंडेण भुत्तेण ?, एवं निच्छितववसाया, आयरिएहि य पुब्वामेव णाऊण एगो पव्वइयतो य पत्थवियो पेसवणं वइरसेणो णामेण सो भणिततो- जाहे तुमं सतसहस्सनिष्कण्णं भिक्खं लभिहिसि ताहे जाणेज्जाहिसि जहा नहं दुभिक्खति, इमे य निच्छियववसाया, तत्थ य एगो खुड्डओ तं भणति-तुमं नियत, सो च्छति, ताहे सो गामे विभोलिज्जति ताव पव्वइयगा तं गिरिं विलग्गा, आयरिया जाति-जहा खुड्डुओ आराहओ, चित्तरक्खणट्ठा लोगस्स, सो य सव्वं जाणति, ताहे सो ताणं गतमग्गेण आगंतूण मा तेसिं असमाही होहितित्ति तस्सेव हेट्ठे सिला तत्थ खुडओ पाओवगओ, सो तेण उण्हेण णवणीओ जहा विराओ, अचिरकालेण वि कालगतो, देवेहिय महिमा कता, ताहे आयरिया भणति – खुड़एण अट्ठो साहितो, तत्थ ते साधुणो दुगुणाणियसद्धा संवेगा जाता, जदि ताव बालेण होन्तएणं एवं कतं ता अम्हे कीस ण सुंदरं करेमो, तत्थ य देवता पडिणीया, सा ते साधुणो साबिगा - रूवेण भत्तपाणेण निमंतेति - अज्ज मे पारणयं करेह, ताहे आयरिएहिं नातं जहा अचितत्तोग्गहोत्ति, तत्थ यन्भासे अण्णो गिरी, तं गता, तत्थ ताहे देवताए काउस्सग्गो कतो, सावि अन्भुट्ठिता, अणुग्गहोत्ति अणुष्णातं, ताहे समाहीए विहिए कालगता, ताहे इंदेण रहेण वंदिता पदाहिणीकरेंतेणं, तत्थ रहावत्तो च्चेव सो य पव्वतो जातो, ताम य भगवंते अद्धणारायं दस य पुव्वा वोच्छि ण्णा, बीओ आदेसो- वइरसामीणं सिंभो जातो, पच्छा ताहे भणितं - जहा ममं सुटिं आणेह, आणीता, तेहिं कण्णे ठविता, जेमेत्ता खाइस्संति, तं च पम्हुढं, ताहे वियाले आवस्सयं करेंतस्स मुहपोत्तियाए चालितं, पडितं, ता से उपयोगो जातो, अहो पमत्तो जातो, पमत्तस्स य णत्थि संजमो, तं सेयं खलु मम भत्तं पच्चक्खाइत्तए, एवं संपेहेत्ता पच्चक्खातं, कालगता । आर्यरक्षिताः 1180411
SR No.600290
Book TitleAavashyak Sutram Purv Bhag
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1928
Total Pages620
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aavashyak
File Size13 MB
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