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________________ श्रीदश वैकालिक चूणों ॥८४॥ म अच्छह वीसत्था, अहमेतं लोग उवाएण निवारेमि, बितिए दिवसे तिष्णि सुवण्णकोडीओ ठवियाओ, उग्धोसावियं नगरे, जहा मनोदमनं अभयो दाणं देइ, लोगो आगओ, भणित चणेण-तस्साहं एताओ तिण्णि कॉडिओ दमि जो एताई तिणि परिहरइ-अग्गि पाणियं महिलं, लोगो भणइ एतेहिं विणा किं सुवण्णकोडीहिं ?, अभयो भणइ-ता किं भणह दपउत्ति पब्वइओ?, जोवि निरत्थओ पत्रइओ तेणांवि एयाओ तिण्णि सुवण्णकोडीओ परिचत्ताओ, सच्चं सामी, ठिओ लोगोत्ति--तम्हा अत्थपरिहीणोऽवि संजमे ठिओ तिण्णि उलोगसाराणि अग्गि उदगं महिलाओ य परिवज्जतो चाइति लन्भइ । एवं तस्स संजमे ठितस्स कस्सइ कदाइ मणं चंचल ण माउग्गामेण सह अभिसंधारणं भवेज्जा तेण कहं काय ?, भण्इ-समाए पेहाए परिव्ययंतो, सिया मणो णोसरई यहिद्धा (९-९३) सिलोगो, समा णाम परमप्पाणं च समं पासइ, णो विसम, पेहा णाम चिन्ता भण्णइ, परिव्ययंतो णाम जो सबप्पगारण संजमाहिगारहि उज्जमंतो, परिव्ययंतो णाम गामणगरादीणि उवदेसेणं विचरतोत्ति वुत्तं भवइ तस्स, एवं पसत्थेहि झाणठाणहि वढ्तस्स मोहणीयस्स कम्मरस उदएणं बहिद्धा मणो णोसरंज्जा, बहिद्धा नाम संजमाओ चाहिं गच्छइ, कहं ', पुन्यरयाणुसरणेणं वा भुत्तभोइणा अभुत्तभोगिणो वा कोऊहलवत्तियाए, तत्थ उदाहरणं जहा एगो रायपुत्तो बाहिरियाए उवट्ठाण सालाए अभिरमंतो अच्छइ, दासी य तेण अंतण जलभरियघडेण वोलेइ, तओ तेण दासीए सो घडो गोलीए भिण्णो, तं च। अद्धिति करेंति दडग पुणरावची जाया, चितियं च-जे चत्र रक्खगा ते विलोवगा कि स्थ कुविउ सक्का'। उदगाओ समुज्ज-! ला लिओ कट्ठमग्गी विझवेतब्वे ॥१॥ तो पुणवि चिक्खल्लगोलीएण तक्खणा चव लहहत्थयाए तं घडछिई ढक्केइ, एवं ॥८४॥ जइ संजतस्स संजमं करेंतस्स बहिया मणो णिग्गच्छइ तत्थ पसत्येण परिणामेण तं असुहसंकप्पछिदं चरित्तजलरकखणट्ठाए ढक्के-18
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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