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________________ ATI मायावकाद्या हेतवः श्रीदश- इदाणि इत्थ चवज दाणि इत्थं चेव जावए वितियं उदाहरणं-एगो वाणियगो भज्ज गहिऊण पच्चंतं गओ, 'पाएण खीणदव्वा धणियपरद्धा कयावैकालिकालावराहा य । पच्चंत सेवते पुरिसा दुरहीयविज्जा य ॥१॥ सा य महिला उम्भामिया, एगमि पुरिसे लग्गा, तं वाणियगं सा चूर्णी गारियं चिंतऊण भणइ-बच्च वाणिज्जेण, तेण भणिया-किं घेत्तूण वच्चामि ?, सा भणइ-उट्ठलेंडियाओ घेत्तृण वच्च उज्जणि, १अध्ययने पच्छा सो सगडं भरेत्ता गओ उज्जेणिं, ताए भणिओ य-जहा एक्कक्कियं दीणारेण देज्जासेत्ति, सा चिंतइ-वरं खु चिरं खिप्पंतो अच्छउ, तेण ताओ बीधीए उड्डियाओ, कोइ न पुन्छइ, मूलदेवेण य दिह्रो पुच्छिओ य, सिटुं तेण, मूलदेवेण चिंतियं-जहा मएस वराओ महिलाए छोमिओ, ताहे मूलदेवेण भण्णइ-अहमताउ ते विक्किणामि जइ ममवि मुल्लस्स अद्धं देहि, तेण भणियं देमित्ति, अब्भुवगते पच्छा मृलदेवेण स हंसो जाएऊण तत्थ बिलग्गिऊण आगासेणं उप्पइओ, नगरस्स मज्झे थाइऊण भणइ-जइ चेडरूवस्स गलए उलिंडिया न बद्धा तं मारेमि, अहं देवी, पच्छा सव्वलोएण भीएण दीणारिकाओ उट्टलेंडियाओ गहियाओ विक्कियाओ काय, ताहे तेण मृलदेवस्स अद्धं दिण्णं,मूलदेवेण य सो भण्णइ-मंदभग्गः तव महिला धुत्ते लग्गा, ताए तव एयं कयं, न पत्तियइ, मूलदेवेण भण्णइ-एहि वच्चामो जा तए दरिसेमि जइ न पत्तियास, तो गया, अण्णाए लेसाए वियाले ओवासो मग्गिओ, ताए दिष्णो, तत्थगमि पएसि ठिया. सी धुत्तो आगओ, इयरीवि धुत्तेण सह पिबेउमारद्धा, इमं च गायइ-'इरि मंदिर पत्तहारओ महु गयउ कतो वणिजारओ। वरिसाण सतं च जीवओ मा घर जीवंतु कयाइ एयउ॥शा, मूलदेवो भण्णइ-कयलीवणपत्तवेढिया, एई भणामि देव ज महलएण गिज्जई सुणेह मुहुतमेव ॥१।। पच्छा मूलदेवेण भण्णइ-किह धुत्ते ?, तओ पभाए णिग्गंतृण पुणरवि आगओ. नीय पुरओ ठिओ. मा महमा संभंता अन्मुट्ठिया, तो खाणपियणे बटुंते तेण वाणिएण सव्वं तीए गीइपज्जंतयं SARKARKARBACROR. mance
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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