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________________ anmainanimaniaana भिक्षुनिक्षेपाः सालीवी हिमादि, कुवियं घडघडियउहुंचणियआसणसयणाइयंति, तेसु च दप्पयादिसु तिगतिअपरिग्गहे णिरया सचित्ताणि | वैकालिकाकासुजमाणा पयमाणा य उद्दिट्ठभत्ताणि य भुंजमाणा दव्याभिक्खवो भवंति. कई पण ते तिगतिगपरिग्गह निरयत्ति १, चौँ :एतस्स अत्थस्स इमा वक्खाणगाथा-'करणतिए जोअतिए ॥ ३४१॥ गाहा. करणकारावणअणुमोदणमइएण तिविधण। १० करणेण तिविधण मणवइकाएण जोएण सावज्जे आरंभे आयहेउं सरीरउवभोगकारणे पवत्तमाणा तह परहेतुगमवि करणतिएण, भिक्षु अ जोगतिएण, य सारज्जेसु पवत्तमाणा, एयस्स उभयस्स अद्वाए पवत्तमाणा भणिया, अणद्वाएवि क लक्खं विधी हामित्ति अन्नतर | सत्तं विधति, पक्खिवाएसु वा एवमादि, एवं अणट्ठाए पवत्तमाणा तेऽवि जाव दवभिक्खुत्ति 'विज्जा' नाम जाणेज्जा, दवाभ॥३३३॥ खू भपिओ । इदाणि भावभिक्खू इमेण गाथापुबद्धण भण्णइ, तंजहा--'आगमओ उपउत्तो० ॥ ३४३॥ गाथा, भावभिक्ख दुविधो, तंजहा--आगमओ णोआगमाओ य, आगमओ जाणए उवउत्तो, णोआगमओ तग्गुणसंवेदए नाम जे भिक्खुगुणे | संवेदयइ सो तग्गुणसंवेदअओ भण्णइ, तण भावभिक्खुणा इहमधिगारो, सेसा उच्चारियसरिसत्तिकाऊण परूविया, भावभिकाबू भणिओ, गयं मिक्खेवत्तिदारं । इदाणिं णिरुत्तमिति, 'तस्स णिरुतं भेद०॥३४३॥ गाथापच्छदूं, 'तस्स' क्ति तस्सा पुन्धभणितस्स भिक्खुस्स निरुतं भेदगेण भेदणेण भित्तव्वएण य तिविधं भवति,एतेसिं तिण्हवि इमं निदरिसणं भत्ताऽऽगयोवजुत्तो' ॥३४४॥ गाहा, भेत्ता) साधू, भेदणं दुविहं बाहिरभंतरओ, भेत्तव्यं अट्ठविहं कम्म, तं च खुहं भण्यइ, अम्हातं भिंदइ अतो निरुत्तं । स भिक्खूत्ति । किंच-भिदंतो अजह खुदं० ॥३४५॥ गाथा, जहा खुई मिदंतो भण्णइ भिक्खू सहा जयमाणो साधू जई भण्णइ, तहा संजमं सत्तरसपगारं चरमाणो चरओ भण्णइ, तहा भवं चउप्पगारं खत्रमाणो खवणो भण्णइ, अहवा भिक्खुसद्दस्त । iescoote -RESCRITICI SC-ST-K... - X
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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