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________________ सकार भिक्षुपदयो निक्षेपाः श्रीदश- || परममहिड्ढिएसु भवइ, अनेसु वा वेमाणिएसु इंदसामाणियादिसु महिड्डिओ भवइ, बेमि नाम तीर्थकरोपदेशात्, न स्वाभिवैकालिक | प्रायेणेति, इदाणी णया-'णायंमि गिण्हियब्वे.'। गाहा, 'सव्वेसिपि णयाणं.' ॥ गाहा, पूर्ववदिति ॥ चूर्णी. विणयसमाहीअज्झयणं सम्मत्तम् सभिक्ष्वध्य हा एतेसु नवसु अज्झयणत्थेसु जो वट्टइ सो भिक्खू , एतेण अभिसंबंधेणागतस्स दसमझयणस्स चत्तारि अणुयोगदारा जहा द आवस्सए, नवरं नामनिप्फण्णो निक्खेवो सभिक्खू, सगारो निक्खिवियव्वो, भिक्खू य निक्खिवियबो, तत्थ पुव्वं सगारो ॥३३०॥ भण्णइ, सो च विहो, तंजहा-नामसकारो ठवण दव्व. भावसगारो यत्ति, णामठवणाओ गयाओ, दब्बसगारों दुविहा, | तंजहा-आगमओ णोआगमओ य, आगमओ जाणए अणुवउत्ते, नोआगमओ तिविहो, तंजहा-जाणयसरीरदव्वसगारो | भवियसरीरदव्वसगारो जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तो 'दव्वसगारोत्ति, तत्थ जाणगसरीरदब्वसगारो जीवो सगारजाणओ तस्स जं सरीरगं जीवरहियं पुब्वभावपण्णवणं पडुच्च, जहा अयं घयकुंभे आसि, एस जाणगसरीरदव्वसगारो, इयाणी भवियस रीरदव्वसगारो जो जीवो सगारं जाणिहित्ति अणागयभावपण्णवणं पडुच्च, जहा अयं घयकुंभे भविस्सइ अयं महुकुंभे भावस्सइ,x *इदाणिं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्तो इमेण गाथापुव्वद्धेण भण्णइ-निद्देसपसंसाए.'॥३३१ ॥ अद्धगाथा, सगारो तिसु अत्थेसु वड-निदेसे पसंसाए अस्थिभावे य, निद्देसे जहा से णं तओ अणंतरं उव्वद्वित्ता इव जंबुद्दीवे एवमादि, पससाए | जहा पुरिसा सप्पुरिसेहि समं वसंता भवंति पुरिसुत्तिमा वरिंदनीलमरगयमणिणो इव जच्चकणगसहसंबद्धा एवमादि, अस्थिभावे जह ससूर्य अमुगं कज्जति एवमादि, व्वसगारो भणिओ. भावसगारो णाम जो जीवो सगारोवउचों सा भावसगारा RECASEANING A-%AC ॥३३०॥ %ary
SR No.600287
Book TitleDashvaikalik Churni
Original Sutra AuthorJindasgani Mahattar
Author
PublisherRushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
Publication Year1933
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size9 MB
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