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सकारभिक्षुपदयो निक्षेपाः
चूणौ.
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श्रीदश
में भण्णइ, एते नामठवणभावसगारा उच्चारितसरिसत्तिकाऊण परूविया, इह पुण दव्वसगारेण पओयणं, तत्थवि जे इमेहिं दोहिं वैकालिक
वति तेण अहिगारो, तंजहा-'णिद्देसपसंसाए.॥३३१ ॥ गाथापच्छद्धं, णिद्देसे पसंसाए य एतेहिं दोहि कारणेहिं इममि दसमज्झयणे पयोयणं, कहं ?, 'जे भावा दसवेआलिअंमि.'॥३३२॥ गाथा, जे भावा दसवेयालिए कराणिज्जा
भगवंतेहिं जिणेहिं वणिया तेसिं भावाणं जेण समावज्जणं कयं सो भिक्खू भण्णइ, सो भिक्खुत्ति सोमणो वा भिक्खुत्ति, तत्थ सभिक्ष्वध्य समावज्जणं णाम जं तेसि गुणाणं करणं तं भण्णइ, सगारो भणिओ। इदाणिं भिक्खु भण्णइ, तस्स इमादारगाहा 'भिक्खुस्स ॥३३१॥
य निक्खेवो० ॥ ३३४ ॥ दारगाहा, भिक्खुस्स य णिक्खेवो भाणियब्वो, णिरुत्तं भाणियब्वं, एगट्ठियाणि भाणियवाणि, लिंगाणि भाणियन्वाणि, अगुणेसु ठितो भिक्खू न भवइ, अगुणेसु य अद्वितो भिक्खू भवइ, एयाणि पयाणि, एतेहिं दारेहिं भिक्खुस्स वक्खाणं कायव्यंति, तत्थ निक्खेवो इमो, तंजहा-'णामं ठवणा भिक्खू०' ॥ ३३५ ॥ गाथापुन्वद्धं, चउम्बिहो भिक्खू भवति, तंजहा-नामभिक्खू ठवण० दव० भावभिक्खुत्ति, नामठवणाओ गयाओ, दवभिक्खू इमो, तंजहा-'दव्वमि
आगमाई.' ॥ ३३५ ॥ गाहापच्छद्धं, दव्वभिक्खू दुविधा, तंजहा-आगमओ णोआगमओ य, आगमओ जाणए उवउत्तो, णोआगमओ तिविधो-जाणगसरीरदबभिक्खू भवियसरीरदव्वभिक्खू जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्तो दबभिक्खू तत्थ | जाणगसरीरदबभिक्खू भिकूखुपदत्थाहिगारे जाणगस्स मयसरीरो, जहा अयं घयकुंभे आसि अयं महुकुंभे आसि, भवियसरीरदवभिक्खू जो भिक्खुपदस्थाहिगारं जाणिहित्ति, जहा अयं घयकुंभे भविस्सति अयं मधुकुंभे भविस्सइ, जाणगसरीरभवियसरीर| वइरिचो दवभिक्खू तिविधो, तंजहा-एगभविओ जो अणंतरभवे भिक्खू भविस्सइ, बद्धाउओ णाम जेण आउयं बद्धं, अभिमुहनामगुत्तो
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॥२३॥
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