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________________ उपासकदशांग सानुवाद ३ चुलनीपिताध्ययन ॥९९॥ ॥९९॥ दसगोसाहस्सिएणं वएणं, जहा आणन्दे राईसर० जाव सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था। सामी समोसढे, परिसा निग्गया, चुलणीपियावि जहा आणन्दो तहा निग्गओ, तहेव गिहिधम्म पडिवजइ । गोयमपुच्छा तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए पोसहिए बम्भचारी समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मप| पणत्तिं उवसम्पज्जित्ता णं विहरह। २. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं पाउन्भूए। नंदनी पेठे राजा, ईश्वर-शेठ वगेरेने (घणा कार्योमा पूछवा योग्य) यावत् सर्व कार्योनो वधारनार हतो. महावीर स्वामी समोसर्या, परिषद् वांदवाने नीकळी. चुलनीपिता पण आनन्दनी जेम वांदवा नीकळ्यो अने तेनी पेठे ज गृहस्थधर्मनो स्वीकार करे छे. गौतम स्वामीनी पृच्छा तेमज जाणवी. (एटले गौतम स्वामी आनन्द संबन्धे प्रश्न करे छे के हे भगवन् ! आनन्द श्रमणोपासक देवानुप्रिय एवा आपनी पासे प्रव्रज्या ग्रहण करवाने समर्थ छ ? इत्यादि प्रश्नो तेमज कहेवा.) बाकी बधु कामदेवनी पेठे जाणवू. यावत् पोषधशालामा पोषधसहित अने ब्रह्मचारी (चुलनीपिता) श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी प्राप्त थयेल धर्मप्रज्ञप्तिनो स्वीकार करीने विहरे छे. २. त्यार बाद ते चुलनीपिता श्रमणोपासकनी पासे मध्य रात्रिना समये एक देव प्रगट थयो. ते देवे एक मोटी काळा कमळ जेवी कह्यो छे, तो हे भगवन् ! श्रीजा अध्ययननो शो अर्थ कह्यो छे ? आ स्पष्ट छे. तथा क्वचित् कोष्ठक चैत्य छे अने क्वचित महाकामबन चैत्य छे. श्यामा नामे भार्या छे.
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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