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________________ २ कामदेवाध्ययन उपासकदशांग सानुवाद ॥७३॥ -७३॥ 3XXXSAEXEEEEX मोक्खकंखिया धम्मपिवासिया पुण्णपिवासिया सग्गपिवासिया मोक्खपिवासिया नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया! जं सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खण्डित्तए वा भञ्जित्तए वा उज्झित्तए वा परिचइत्तए बा, तं जइ णं तुम अन्ज सीलाई जाव पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भञ्जसि तो ते अहं अज इमेणं नीलुप्पल. जाव असिणा खण्डाखण्डि करेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया! अदृदुहद्दवस। अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि । स्वर्गनी कांक्षावाळा, मोक्षनी कांक्षावाला, धर्मनी पिपासावाळा, पुण्यनी पिपासावाळा, स्वर्गनी पिपासावाळा अने मोक्षनी पिपासावाळा कामदेव श्रमणोपासक ! देवानुप्रिय ! जे शील-अणुव्रतो, व्रतो-दिशावत वगेरे, विरमण-रागादिनी विरति, पच्चक्खाण-प्रत्याख्यान अने पोषधोपवासने चलावयो-भंग करवो, (एने पाळवामा) क्षोभ करवो, खंडन करवो, भांगयो, त्याग करवो अने सर्वथा त्याग करवो तने कल्पतो नथी. जो तुं आजे शील यावद् पोषधोपवास छोडीश नहि के भांगीश नहि तो आजे आ काळा कमळ जेवी यावत् तलवार वडे तारा टुकडे टुकडा करीश. जे रीते हे देवानुप्रिय ! तुं आर्तध्याननी दुर्घट-अत्यंत पराधीनताथी पीडित थयेलो अकाळे जीवितथी मुक्त थइश. श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कहे छे-'अपत्थियपत्थया' अप्रार्थित-नहि इच्छेल मरणनी प्रार्थना करनार, 'दुरन्तपंतलक्खणा' दुरन्त-दुष्ट अन्त-परिणाम जेनो छे एवा अने प्रान्त-हीन लक्षणवाळा, 'हीनपुण्णचाउद्दसिया' हीन-अपूर्ण पुण्य चतुर्दशी-काळी चतुर्दशीने विशे| जेनो जन्म थयेलो छे एवा, श्री-शोभा, ही-लजा, धृति-धैर्य अने कीर्तिरहित, 'धम्मकामया' शृत अने चारित्र रूप धर्मनी अभिलाषा
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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