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________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन ॥५७|| ॥५॥ नयरे उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धं करेह । तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दुइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसम्भन्ते जुगन्तरपरिलोयणाए दिट्ठीए पुरओ ईरियं सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ । तए णं से भगवं गोयमे | वाणियगामे नयरे जहा पण्णत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जत्तं भत्तपाणं सम्मं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहित्ता वाणियगामाओपडिणिग्गच्छइ, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायरस सन्निवेसस्स अदूरसामन्तेणं वईवयअने नमस्कार करे छे. वंदन अने नमस्कार करीने तेणे ए प्रमाणे कयु-'हे भगवन् ! आपनी अनुज्ञा वडे छट्ठना उपवासना पारणे वाणिज्य ग्राम नगरने विशे घर समुदायना उच्च, नीच अने मध्यम कुलोमा मिक्षाचर्याए जवाने इच्छं छु.' (भगवंते कह्यु-) हे दे| वार्नु प्रिय ! सुख थाय तेम करो, प्रतिबंध न करो. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे अनुज्ञा आपी एटले भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी दूतिपलाश चैत्यथी नीकळे छे. नीकळीने त्वरा, चपलता अने संभ्रम सिवाय युगप्रमाण भूमिने जोनारी | दृष्टि वडे ईर्या-मार्गने शोधता ज्यां वाणिज्य ग्राम नगर छे. त्यां आवे छे आवीने वाणिज्य ग्राम नामे नगरमां घर समुदायना उच्च, नीच अने मध्यम कुळोमां भिक्षाचर्या माटे भमे छे. त्यार पछी ते भगवान् गौतम वाणिज्यग्राम नगरमा जेम भगवतीसूत्रमा कह्यु छ तेम भिक्षाचर्याए भमता यथा योग्य भात पाणीने सम्या प्रकारे ग्रहण करे छे. ग्रहण करीने वाणिज्य ग्रामथी नीकळे छे, नीकळीने!
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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