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________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन ॥५४॥ ॥५४॥ *****KEEEEEXX सुक्के जाव किसे धमणिसन्तए जाए । तए णं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ पुब्वरत्ता. जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ५-'एवं खलु अहं इमेणं जाव धमणिसन्तए जाए, तं अत्थिता मे उहाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे सद्धाधिइसंवेगे, तं जाव ता मे अत्थि उहाणे सद्धाधिइसंवेगे जाव | य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ ताव ता मे सेयं कल्लं जाव जलन्ते अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाझूसणाझूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स कालं अणवकमाणस्स विहरित्तए' एवं सम्पेहेइ, संपेहित्ता कल्लं पाउ० जाव अपच्छिममारणन्तिय जाव कालं अणवकङ्खमाणे विहरइ। तए णं तस्स | धमनी-नाडीओ बडे व्याप्त थयो एटले तेना शरीरनी नाडीओ देखावा लागी. त्यार पछी ते आनन्द श्रावकने अन्य कोइ दिवसे मध्य | रात्रीए धर्म जागरिका करतां आवो संकल्प थयो-'ए प्रमाणे हुं आ प्रकारना तप बडे धमनीथी व्याप्त शरीरवाळो थयो र्छ अने हजी मारामां उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकारपराक्रम तथा श्रद्धा, धैर्य अने संवेग छे, ज्यां सुधी मारामां उत्थान यावत् श्रद्धा, धैर्य अने संवेग छे अने ज्यां सुधी मारा धर्माचार्य अने धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर जिन सुहस्ती विचरे छे त्यां सुधी मारे आवती काले सूर्योदय थये अपश्चिम-सौथी छेल्ली मारणान्तिक संलेखनानी आराधना युक्त थइने, भात पाणी- प्रत्याख्यान करी, अने वडे धर्मने स्पर्श करतो एक दिवसथी मांडी उत्कृष्ट अगियार मास सुधी विचरे. ए प्रमाणे बधे प्रायः बहुधा जाणवू. १२. 'उरालेग' उदार पवा तप बडे इत्यादि वर्णन मेषकुमारना तपना वर्णननी पेठे जाणवू. यावत् 'अनवकांक्षन्'-मरणनी दरकार नहि करतो विहरे छे.
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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