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________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन ॥३९॥ ॥३९॥ समायरियब्वा । तंजहा-इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, 'हुँ राजा थाउं' वगेरे इच्छा करवी, २ परलोकाशंसाप्रयोग 'हुं देव थाउं' एवा प्रकारे परलोकनी इच्छा करवी. ३ जीविताशंसाहोबाथी जे अहीं अतिचार कह्या छे ते ब्रतना सर्वथा भंगरूप छे एम शंका न करवो. जे अहीं दरेक व्रतना पांच पांच अतिचार कह्या छे ते बीजा अतिचारोना सूचक छे, परन्तु तेटलाज छे एव॒ अवधारण-निश्चित नथी. ए संबन्धे पूज्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण कहे छे-"पंच पंचाइयारा उ सुत्तमि जे पदसिया । ते नावहारणहाए किंतु ते उवलक्षणं" ॥ सूत्रमा जे पांच पांच अतिचार बताब्या छे ते तेटलाज छे पवो नियम नथी, परन्तु बीजा अतिचारोनुं उपलक्षण छे. अहीं आ भावार्थ छे-जे व्रतने विशे अनाभोगादि वडे, अतिक्रमादि त्रण पद वडे के पोतानी बुद्धिकल्पनाथी व्रतना विषयनो त्याग करतां प्रवृत्ति थाय ते अतिचार अने तेथी | विपरीतपणामां भंग जाणवो. प प्रमाणे संकीर्ण-एकमेक थयेला-उभयार्थक अतिचार पदनो अर्थ समजवो. (प्र०)-सर्वविरतिमा अतिचार संभवे छे अने देशविरतिमां तो व्रतनो भंग ज थाय छे. प संबन्धे का छे के-" सब्वेवि य अइयारा संजलणाणं तु उदयओ टुति । मूलछेज्ज पुण होइ बारसण्डं कसायाणं" ॥ बधा अतिचारो संज्वलन कषायना उदयथी होय छे, अने बार कषायना उदयथी तो व्रतनो मूळथी छेद-भंग थाय छे. (उ०)-आ गाथा सर्व विरतिने विशेज अतिवार अने भंग जणाववा माटे छे, परन्तु देशविरतिनो भंग बताववा माटे नथी. कारण के तेनी वृत्तिमा तेवा प्रकारनी व्याख्या करी छे. संचलनना उदयविशेषथी सर्वविरतिविशेषना अतिचारो होय छे, पण मूळथी छेद-भंग थतो नथी. प्रत्याख्यानावरणादिना उदयमा पाछळना क्रमथी सवें विरति वगेरेनो मूळथी छेद थाय छे' पवी व्याख्या करवामां आवे तो पण देशविरति वगेरेमा अतिवारनो अभाव सिद्ध थतो नथी. कारण के जेम संयत-साधुने चोथा संज्वलनना उदयथी यथाण्यात चारित्रनो नाश थाय छे अने अन्य चारित्र अने सम्यक्त्व सातिचार अने उदयविशेग्थी निरतिचार होय छे. बीजा कषायना
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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