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________________ उपासक दशांग सानुवाद ॥३३॥ णुवाए, रूवाणुवाए, बहिया पोग्गलपक्खेवे १० । तयाणन्तरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पञ्च अइवगेरे शब्द संभळाचवो. ४ रूपानुपात - बीजाने जणावचा पोताना शरीरनुं रूप देखाडवुं, बीजानी दृष्टिए पडवुं अने ५ बहिः पुद्गलप्रक्षेप| अन्यने जणाववा बहारना भागमां ढेफुं, कांकरो वगेरे पुद्गलनो प्रक्षेप करवो. त्यार पछी श्रमणोपासके पोषधोपवासना पांच अति हवे शिक्षाव्रतना अतिचारो अतिचारो कहे छे-जेनों वारंवार अभ्यास करवो ते शिक्षाव्रत. सामाइयस्सत्ति सम-रागद्वेषरहित, जे सर्व प्राणीओने आत्मवत् जुए छे, तेने आय निरुपम सुखना कारणभूत अने चिन्तामणि अने कल्प वृक्ष करता पण श्रेष्ठ पवा प्रतिक्षण अपूर्व अपूर्व ज्ञान, दर्शन अने चारित्र पर्यायनो लाभ थवो ते समाय, ते जेनुं प्रयोजन छे ते सामायिक सावद्य योगना त्यागरूप अने निरवद्य योगना सेवनरूप जागवुं ते सामायिकना पांच अतिचार छे-१ 'मणदुप्पणिहाणे' 'मनः दुष्पणिधान-मननो दुष्ट प्रणिधान १ क्रोध, लोभ,द्रोह, अभिमान इर्ष्या वगेरे तथा घरना कार्यनो विचार ते मनोदुष्प्रणिधान, २ वर्णसंस्कारनो अभाव - सूत्रना स्पष्ट उच्चारंनो अभाव, अर्थनो बोध नहि होवो अने चपलता ते वचनदुष्प्रणिधान अने ३ शरीरना हस्त पादादि अवयवोनी अनिश्चलता ते कायदुष्प्रणिधान. ए संबन्धे कछु छे के "नहि जोयेल अने नहि प्रमाजेल स्थंडिल भूमिने विशे स्थाननो आश्रय करतो हिंसा नहि होवा छतां पण प्रमादवडे सामायिक रहित जाणवो. जेणे सामायिक कर्यु छे ते पूर्वे बुद्धिथी | विचारीने सदा निरवद्य वचन बोले, अन्यथा सामायिक न थाय. जे श्रावक सामायिक करीने आर्तध्यानने वश थयेलो घर संबन्धी कार्यनी चिन्ता करे तेनुं सामायिक निरर्थक छे. ४ सामायिकनो अनादर प्रतिनियत समये सामायिक न कर, अथवा जेम तेम सामायिक कर प्रबल प्रमादादि दोषथी कर्या पछी तुरत पारबुं. ५ सामायिकनुं स्मरण न थयुं के 'मारे सामायिक करवानुं छे के करवानुं नथी, अथवा में सामायिक कयूँ छे के क्यूँ नथी. ज्यारे प्रबल प्रमादथी स्मरण न थाय त्यारे अतिचार लागे छे. कारण के मोक्षसाधक अनुष्ठाननुं मूळ स्मरण छे. ( प्र ० ) – मनदुष्प्रणिधानादिने विशे सामायिकनुं निरर्थकपणुं जणान्युं तेथी वास्तविक रीते तेनो अभाव को अने अतिचार तो मलिनता रूप छे तो सामायिकना अभावमा अतिचार केम होय ? माटे ते सामामायिकता भङ्ग रूप छे पण अतिचार नथी. ( उ० ) अनाभोगथी अतिचार होय छे. १ आनंदाध्ययन ॥३३॥
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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