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________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदा ध्ययन 7 ॥२७॥ ) ॥२७॥ तयाणन्तरं च णं उवभोगपरिभोगे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-भोयणओ य कम्मओ य । तत्थ णं भोयणओ य समणोवासएणं पञ्च अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा । तंजहा-सचित्ताहारे, सचित्तपडिबद्धाहारे, __ त्यार पछी उपभोग-परिभोग व्रत बे प्रकारचें कहेलुं छे. ते आ प्रमाणे-भोजनने आश्रयी अने कर्मने आश्रयी. तेमां भोजनने आश्रयी श्रमणोपासके पांच अतिचारो जाणवा, पण आचरवा नहि. ते आ प्रमाणे-१ सचित्ताहार-सचेतन वनस्पति वगेरेनो 'उडढदिसिपमाणाइकमे' ऊर्य दिशाना प्रमाणर्नु उल्लंघन करवं. क्वचित् 'उड्ढदिसाइकमे' एवो पाठ के. ए प्रमाणे २ अधोदिशा अने ३ तिर्यग दिशाना प्रमाणर्नु उल्लंघन करवू. ए ऊर्वदिशादिनो अतिक्रम-उलंघन अनाभोगादि अने अतिक्रमादिवडे अतिचार रूपे जाणवू. ४ 'खेत्तवुढि'त्ति. क्षेत्रवृद्धि-पक दिशामा सो योजन प्रमाण क्षेत्रनो अभिग्रह छे अने बीजी दिशामां दस योजन छे, तेथी जे दिशामा दस योजन छे ते दिशामा जवान प्रयोजन होय त्यारे पोतानी बुद्धिथी सो योजनांधी दस योजन लइने बीजा दस योजन तेमां नांखे छे, एटले पक दिशामां वधारे छे. तेने व्रतनी अपेक्षा होवाथी आ अतिचार छे. ५ 'सइअन्तरद्धा' स्मृत्यन्त -स्मृतिनो अन्तर्द्धा-नाश, दिशाना परिमाणनी स्मृति-याददास्त न होवी. 'में सो योजननी मर्यादानुं के पचास योजननी मर्यादानुं व्रत ग्रहण कयु छे' एवं स्मरण न होय त्यारे सो योजननी मर्यादा होय तोपण पचास योजननी आगळ जनारने अतिचार जाणवो. (जो अनाभोगथी क्षेत्रपरिमाणर्नु उल्लंघन कर्यु होय तो पार्छ फरवु, जाण्या पछी न जवू, बीजाने न मोकलवो. आज्ञा सिवाय कोइ गयो होय तो तेणे जे वस्तु मेळवी होय अथवा विस्मरण थवाथी स्वयं गयो होय अने जे वस्तु मळी होय तेनो त्याग करवो.) उपभोग-परिभोग व्रत के प्रकारनु छे-'भोयणओ य कम्मओ य' भोजनने आश्रयी, पटले बाह्य अने अभ्यन्तर भोग्य वस्तुनी अपेक्षाए अने 'कर्मतः' क्रियाने-बाह्य अने अभ्यन्तर भोग्य वस्तुनी प्राप्तिनुं कारण जीवनवृत्ति-आजीविकाने आश्रयी. तेमा भोजनने आश्रयी पांच अतिचारो आ प्रमाणे छे–१ 'सचित्ताहारे' चित्त-चेतना सहित होय ते सचित्त-पृथिवीकाय, अप्काय अने वनस्पतिकाय जीवना
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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