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________________ उपासक दशांग सानुवाद. *महाशतक अध्ययन ॥१६६॥ ॥१६६॥ समणोवासए तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता मोहुम्भायजणणाई सिङ्गारियाई इथिभावाइं उवदंसेमाणी २ महासययं समणोवासयं एवं वयासी-'हं भो महासयया ! समणोबासया! धम्मकामया पुण्णकामया सग्गकामया मोक्खकामया धम्मकटिया ४ धम्मपिवासिया ४ किण्णं तुम्भं देवाणुप्पिया! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा? जण्णं तुमं मए सद्धिं उरालाई जाव भुञ्जमाणे नो विहरसि । तए णं से महासयए समणोवासए रेवईए गाहावइणीए एयमद्वं नो आढाइ, नो परियाणाइ, अणाढाइजमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्यां महाशतक श्रमणोपासक छे त्यां आवे छे. त्या आधीने मोहोन्माद उत्पन्न करनारा, शृंगाररसवाळा स्त्रीभावने प्रदर्शित करती करती तेणे महाशतक श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कयु-धर्मनी इच्छावाळा, पुण्यनी इच्छावाळा, स्वर्गनी इच्छावाळा, मोक्षनी इच्छावाभा, धर्मनी कांक्षावाळा ४ धर्मनी पिपासावाळा ४ हे महाशतक श्रमणोपासक ! देवानुप्रिय ! तमारे धर्म, पुण्य, स्वर्ग के मोक्षनुं शुं काम छे, के जे तमे मारी साथे उदार यावत् भोग्य-भोगववा लायक भोगो भोगवता नथी? ते पछी ते महाशतक श्रमणोपासक रेवती गृहपत्नीना ए अर्थनो आदर करतो नथी, अने तेने सारी रीते जागतो नथी, आदर नहि करतो अने नहि जागतो मौन धारण 'विहरसि' सुधी रेवतीना वाक्यनो आ अभिप्राय छ-आज एनो स्वर्ग अथवा मोक्ष छे के जे मारी साथे विषयसुखनो अनुभव करवो. धर्मानुष्ठान स्वर्गादि माटे कराय छे, सुखना माटे स्वर्गादिनी इच्छा कराय छे अने सुख तो एटलुंज छे जे कामर्नु सेवन करवू, ए संबन्धे कहे छ के "जइ नरिथ सोमंसिणी भो मणहरपियंगुवण्णाओ। ता हे सितिय ! बंधणं खु मोक्खो न सो मोक्खो"॥
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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