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________________ उपासकदशांग सानुवाद सद्दालपुत्र अध्ययन ॥१५॥ ॥१५॥ णाभिमुहे साहत्थि सम्पावेइ, से तेणटेणं सद्दालपुत्ता! एवं बुच्चइ-'समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ।। आगए णं देवाणुप्पिया! इहं महाधम्मकही? के णं देवाणुप्पिया! महाधम्मकही ? समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही । से केणटेणं समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ? एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवन्ने सप्पहविप्पणढे मिच्छत्तफ्लाभिभूए अट्ठविहकम्मतमपडलपडोच्छन्ने बहहिं अट्ठेहि मोटा संसारमा नाश पामता, विनाश पामता, भक्षण कराता, छेदाता, भेदाता, लुप्त थता, विलुप्त थता, उन्मार्गने प्राप्त थयेला, सन्मार्गथी भूला पडेला, मिथ्यात्वना बळ वडे पराभव पामेला अने आठ प्रकारना कर्म रूप अन्धकारना समूह वडे ढंकायेला घणा जीवोने घणा अर्थो, यावत व्याकरणो-उत्तरो वडे चार गतिरूप संसाराटवीथी पोताना हाथे पार उतारे छे, ते हेतुथी हे देवानुप्रि| य ! एम कहेवाय छे के 'श्रमण भगवान महावीर महाधर्मकथी छे'. सहालपुत्र ! श्रमण भगवान् महावीर अत्यन्त मोटा संसारने विशे नाश पामता, यावत् विलोप पामता, उन्मार्गने प्राप्त थयेला, सन्मागथी दूर गयेला, मिथ्यात्वना बल बडे पराभव पामेला, आठ प्रकारना कर्म रूप अन्धकारना पटल-समूह बडे ढंकायेला घणा जीवोने घणा अथा, हेतुओ, प्रश्नो, कारणो-युक्तिओ अने उत्तरो बडे चार गति वाळा संसार रूप अटवोथी पोताना हाथे पार उतारे छे, ते माटे हे सद्दालपुत्र ! श्रमण भगवान् महावीर महाधर्मकथी छे. आ पाठनो अर्थ स्पष्ट छे. परन्तु जीवोना नश्यन्-नाश पामता बगेरे विशेषण रूप हेतु बताववा कहे छे-'उन्मार्गप्रतिपन्नान्' उन्मार्गने प्राप्त थयेला, पटले जेणे मिथ्याष्टिना शासननो आश्रय करेलो छे एवा, 'सत्पथविप्रनष्टान-सम्मानो-जिन शासननो जेणे त्याग कयाँ हे पवा, पम शा हेतुथी छे ? ते कहे ठे-मिथ्या
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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