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उपासकदशांग सानुवाद
सद्दालपुत्र अध्ययन
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तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणु
* प्पिया ! लहुकरणजुत्तजोइयं समखुरवालिहाणसमलिहियसिङ्गएहिं जम्बूणयामयकलावजोत्तपइविसिट्टएहिं - रययामयघण्टसुत्तरज्जुगवरकश्चणखइयनत्थापग्गहोग्गहिएहिं नीलुप्पलकयामेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नाश्रमणोपासक सद्दालपुत्र कौटुम्बिक पुरुषोने बोलावे छे. बोलावीने तेणे आ प्रमाणे कह्यु-हे देवानुप्रिय ! लहुकरण-शीघ्र क्रिया करवामां युक्त एवा पुरुषे जोडेल, समान खुर-खरी अने वालिधान-पुच्छ जेओना छे तथा सरखी रीते उगेला शीगडावाळा, जम्बूनदसुवर्णमय कलाप-डोक- आभूषण, अने योक्त्र-जोतर प्रतिविशिष्ट-सुशोभित जेओर्नु छे एवा, रजतमय घंट जेने छे एवा, सूतरनी रज्जुरूप . श्रेष्ठ सुवर्ण वडे युक्त नाथसंबन्धी राश बडे अवगृहीत-बांधेला, काळा कमळना करेला आपीड-छोगा जेओने छ एवा श्रेष्ठ युवान बळदो वडे स्वीकारे छै. स्वीकारीने स्नान करी जेणे बलिकर्म करेलुं छे एवी, बलिकर्म लोकमां प्रसिद्ध छे, जेणे कौतुक, मंगल अने प्रायश्चित्त कयु छे एवी, कौतुक-मेषना तिलक करवा वगेरे, मंगल-दहीं, अक्षत, चंदन वगेरे, प्रायश्चित्त-दुःस्वप्नादिनो नाश करनार होवाथी प्रायश्चितनी पेठे अवश्य करवा योग्य, 'सुद्धप्पावेसाई' शुद्धात्मा-शुद्ध आत्मा जेनो छे पवी, वैषिकाणि-वेपने योग्य श्रेष्ठ वस्त्रो जेणे पहेरेला छे पवी, 'अल्पमहा_भरणालंकृतशरीरा' अल्प अने महामूल्य वाला आभरण बडे अलंकृत-सुशोभित शरीर जेनु छे एवी, 'चेटिकाचक्रवालपरिकीर्णा दासीओना समूह वडे वीटायेली, बीजा पुस्तकमां यानतुं वर्णन छे ते व्याख्या सहित आ प्रमाणे जाणवू'लहुकरणजुत्तजोइयं' लघुकरण-शीघ्र क्रिया करवा बडे-दक्षपणा घडे युक्त पुरुषोए योजित-यन्त्र अने यूपादि वडे जोडायेलु, 'समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगरहि' सम-तुल्य छे खरी अने वालिधान-पुच्छ जेना तथा सम-सरखा लिखित-उल्लिखित कोतरेला-उगेला शृंग-शींगडा जेना छे पचा, 'जाम्बूनदमयकलापयोक्त्रप्रतिविशिष्टाभ्यां' सुवर्णमय कलाप-डोक- आभरण अने योक्त्र-जोतर प्रतिवि