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________________ उपासक-1 दशांग सानुवाद ॥१२६॥ ६ कुंडकोलिक अध्ययन | ॥१२६॥ | लिया ! कलं तुब्भ पुब्वावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अन्तियं पाउभवित्था। तए णं से देवे नाममुदं च तहेव जाव पडिगए । से नूणं कुण्डकोलिया! अढे समझे ? हन्ता अस्थि । तं धन्ने सिणं तुम कुण्डकोलिया! जहा कामदेवो । 'अज्जो' इ समणे भगवं महावीरे समणे निग्गन्थे य निग्गन्धीओ य आमन्तित्ता एवं वयासी-जइ ताव अज्जो गिहिणो गिहमज्झावसन्ता णं अन्नउत्थिए अटेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पट्ठपसिणवागरणे करेन्ति, सका पुणाई अज्जो समणेहिं निग्गन्थेहिं दुवालसङ्गं काले तारी पासे मध्याह्न समये अशोकवानिकामां कोई एक देव आव्यो हतो. त्यार बाद ते देवे तारी नाममुद्रा अने उत्तरीय लइ ली, इत्यादि यावत् ते पाछो गयो. हे कुंडकोलिक! खरेखर आ अर्थ सत्य छे ? हा, छे. तो कुंडकोलिक ! तुं धन्य छो, वगेरे कामदेवनी पेठे कहेवू. 'हे आर्यो' एम संबोधी श्रमण भगवंत महावीरे निर्ग्रन्थो अने निर्ग्रन्थीओने आ प्रमाणे कडं-हे आर्यो ! जो गृहस्थावासमा रहेता गृहस्थो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अने उत्तर वडे अन्यतीथिकोने निरुत्तर करे छे तो हे आर्यो ! द्वादशांग 'कारणः' उपपत्ति-युक्तिओ बडे, साविती चडे, 'व्याकरणैः' बीजाए पूछेला प्रश्नोना उत्तर आपवा बडे, 'निप्पपसिणवागरणे' त्ति. निरस्त अने स्पष्ट कर्या छे प्रश्नना व्याकरण-उत्तरो जेओना एघा, अथवा प्राकृत होवाथी 'निष्पिष्टप्रश्नव्याकरणान्' निष्पिष्ट-खंडन | |करेला छे प्रश्शना उत्तरो जेओना पवा प्रकारना करे छे. 'सका पुणति हे आयों! श्रमणोप निरस्त अने स्पष्ट करेला छे प्रश्नोत्तर | जेओना पवा अन्यतीर्थिकोने करवा शक्य ज छे. उपासकदशाना छठा अध्ययननो टीकानुवाद समाप्त. XECXXCXXXXCCCCCCCCXXX TOXXXSSS*
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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