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________________ उपासकदशांग सानुवाद १ आनंदाध्ययन EX ॥११॥ ॥१ णं उवभोगपरिभोगविहिं पचक्खाएमाणे उल्लणियाविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ एगाए गन्धकासाईए, अवसेसं सव्वं उल्लणियाविहिं पच्चक्खामि'३। तयाणन्तरं च णं दन्तवणविहिपरिमाणं करेइ, नन्नत्थ एगेणं अल्ललठ्ठीमहएणं, अवसेसं दन्तवणविहिं पञ्चक्खामि'३॥ तयाणन्तरंच णं फलविहिपरिमाणं करेइ,'नन्नत्थ एगेणं खीरामलएणं, | अवसेसं फलविहिं पञ्चक्खामि' ३। तयाणन्तरं च णं अब्भङ्गणविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ सयपागसहस्सपागेहिं करतो अंगलूपण-अंगुछार्नु परिमाण करे छे. एक गंधकाषायी-सुगंधी राता अंगुछा सिवाय बाकीना बधा अंगुछानो त्याग करु छु. त्यार पछी दन्तपवन-दातणनी विधिनुं प्रत्याख्यान करे छे. एक लीला यष्टिमधु-जेठीमधना दातण सिवाय बाकीना दातणनो त्याग करु छ. त्यार बाद फळविधिनुं परिमाण करे छे. एक क्षीरामलक-मधुर आमळाना फळ सिवाय बाकीना फळोनो त्याग करूं छु. त्यार पछी अभ्यंगविधिनुं परिमाण करे छे. शतपाक अने सहस्रपाक तैल सिवाय बाकीना अभ्यंग विधिनो त्याग करुं छं. त्यार बाद जेओर्नु ले ते सांवाहनिक एटले लाववा लइ जवाना कार्यमा रोकायेला पांचसो शकटो सिवाय बीजा शकटोनो त्याग करे छे. वाहन-वहाणनी विधिना परिमाणमा दिग्यात्रिक-देशान्तरमा मोकलवा योग्य चार वाहन-यानपात्र-वहाण अने संवाहन-लाववा जवाना कार्यमां रोकायेला चार वहाणो सिवाय बीजा वहाणोनो त्याग करे छे. 'उवभोगपरिभोग' त्ति. उपभुज्यते-वारंवार भोगवाय-उपयोग करी शकाय ते उपभोग-घर, वस्त्र, स्त्री वगेरे, परिभुज्यते-एकवार भोगवी शकाय ते परिभोग-आहार, पुष्प, विलेपन वगेरे. अथवा तेथी विपरीत व्याख्या करवी. एकवार भोगवी शकाय ते उपभोग अने वारंवार भोगवी शकाय ते परिभोग समजवो. ते उपभोग परिभोगना विधिनुं प्रत्याख्यान करतो 'उल्लणिय' ति उल्लणिया-अंगुछार्नु, स्नानना जळ वडे भीजायेला शरीरना जळने लुंछवाना वस्त्रनुं परिमाण करे छे. एक 'गंधकासाईप' कषाय-लाल रंग वडे रंगायेली शाटिका-वस्त्र काषायी कहेवाय छे 'गन्धप्रधाना काषायी'
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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