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________________ उपासक दशांग सानुवाद ॥१०॥ करेइ, 'नन्नत्थ पञ्चहिं हलसएहिं नियत्तणसइएणं हलेणं, अवसेसं सव्वं खेत्तवत्थुविहिं पञ्चक्खामि' ३ | तयाणन्तरं चणं सगडविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ पञ्चहिं सगडसएहिं दिसायत्तिएहिं पञ्चहिं सगडसएहिं संवाहणिएहि, | अवसेसं सव्वं सगडविहिं पञ्चक्खामि' ३ | तयाणन्तरं च णं वाहणविहिपरिमाणं करेइ, 'नन्नत्थ चउहिं वाहणेहिं दिसायत्तिएहिं चउहिं वाहणेहिं संवाहणिएहिं, अवसेसं सव्वं वाहणविहिं पञ्चक्खामि' ३, ५ । तयाणन्तरं च शकाय एटली क्षेत्रनी भूमि सिवाय बाकीना क्षेत्रवस्तुनुं प्रत्याख्यान करूं छं. त्यार पछी शकट-गाडानुं परिमाण करे छे, बहार देशान्तरमां गमन करवा योग्य पांचसो गाडां, अने सांवाहनिक- मालनुं वहन करनारा पांचसो गाडां उपरांत बघा शकटोनुं प्रत्या| ख्यान करूं छं. त्यार बाद वहाणनुं प्रत्याख्यान करे छे. देशान्तरमां मोकलवा योग्य चार वहाणो अने अहींना सांवाहनिक-माल लाववा लइ जवा योग्य चार वहाणो सिवाय बाकीना वहाणोनुं प्रत्याख्यान करूं कुं. त्यार बाद उपभोग - परिभोग विधिनुं प्रत्याख्यान इच्छा नहि करूं, 'अवशेषं तेथी अधिक हिरण्यादिनो त्याग करुं छु. एम बधे स्थळे जाणवु, त्यार बाद चतुष्पद विधिना परिमाणमां दसहजार गायोनुं एक गोकुळ एवा चार गोकुळ सिवाय बीजा चतुष्पदोनो त्याग करे छे. क्षेत्रवस्तु विधिना परिमाणमा 'खेत्तवत्थु ' क्षेत्ररूप वस्तु ते क्षेत्रवस्तु, बीजा ग्रन्थोमां क्षेत्र अने वास्तु-घर एवी व्याख्या करेली छे. तेमां 'नियत्तणसइरणं' निवर्तन-देश विशेषमां प्रसिद्ध एक जातनुं भूमिनुं परिमाण छे, 'निवर्तनशतं कर्षणीयं यस्य अस्ति निवर्तनशतिकं' सो निवर्तन जमीन खेडवा योग्य जेने छे एवं एक हळ, एवा पांचसो हळ वडे खेडवा योग्य भूमि सिवाय वाकीनी भूमिनुं प्रत्याख्यान करे छे. २ शकटविधिना परिमाणमा 'दिसायात्तरहिं' दिग्यात्रा - देशान्तरगमन प्रयोजन जेनुं छे ते दिग्यात्रिक-देशान्तरमां गमन करवा योग्य पांचसो शकट, ते सिवायना बीजा शकटोनो तथा 'संवाहणिपहि' संवाहन-वहेतुं, क्षेत्रादिथी घास, काष्ठ अने धान्यादिनुं घर वगेरे स्थळे लावतुं ते प्रयोजन १ आनंदा ध्ययन ॥१०॥
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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