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श्रीदे. चैस्यश्रीधर्म
विधौ
अंगादिपूजात्रयं
संघाचार
AIMITION
नायगसेवगबुद्धी न होइ एएसु जाणगजणस्स | पिच्छंतस्स समाण परिवार पाडिहेराई ।।७।। (६०) ववहारो पुण पडमं पइटिओ मूलनायगो एसो । अवणिजइ सेसाणं नायगभावो न उण तेणं ॥८॥ (५१) वंदणपूयणबलिढोयणेमु एगस्स कीरमाणेसु । आसा-II यणा न दिट्टा उचियपवित्तस्स पुरिसस्स ।।९।। (५२) जह मिम्मयपडिमाणं पृया पुप्फाइएहिं खलु उचिया । कणगाइनिम्मियाणं | उचियतमा मज्जणाईवि ॥१०॥ (५४) अविय-कल्लाणगाइकज्जा एगस्स विसेसपूअकरणेऽवि । नावन्नापरिणामो जह धम्मिजणस्स सेसेसु ॥११॥ (५३) उचियपवितिं एवं जहा कुणंतस्स होइ नावन्ना । तह मूलविवपूआविसेसकरणेऽवि नन्नत्थ ।।१२।। (भा.५५) किंच-जिणभवणविंयपूआ कीरति जिणाण नो कए किन्तु ! सुहभावणानिमित्तं वुहाण इयराण बोहत्थं ॥१३॥ (१४२) जओ-चेइयहरेण केई पसंतरूवेण केह विवेण । पूआइसयाकेई अन्ने बुझंति उवएसा ॥१४॥.(१४३)इति पुष्पाद्यैःप्रथमा अंगपूजा।
अथ द्वितीया अग्रपूजा भाव्यते-सा च प्रधानाहारेण आमिषापरपर्यायेण, पद्गौडः-उत्कोचे पलले न स्वी, आमिष भोज्य| वस्तुनि' । तेनाशनादिना चतुर्विधेन भवति, तथाहि-इह होइ असणपूया वरखज्जगमोयगाइभक्खेहिं १ । दुद्धदहिपाणियाइ| भायणेहि२ तह ओयणाईहिं३ ॥१॥ अत्र निशीथचूर्णिः 'संप्रति राजा रहग्गओ य विविहफलखञ्जगभुज्जगेय कवडगवत्थमाई उक्किरणे करेइ' । अन्यत्रोक्त-"नाणाफलेहि व थएहि निचं"२ तथा वसुदेव हिंडो मृगब्राह्मणप्रस्तावे "कयाइ य देवकन्जे सज्जियं भोयणं,साहवो उवागया,तिण्हवि जणाण समवाओ पडिलामेमो"त्ति, कल्पे तु-'साहम्मिओ न सस्था तस्स कयं तेण | कप्पइ जईणं । जं पुण पडिमाण कए तस्स कहा का अजीवत्ता? ॥१॥ संवट्टिमेहपुप्फा सत्थनिमित्तं कया जइ जईणं ।न हु लन्भइ पडिसेहं किं पुण पडिमट्टमारद्धं ॥२॥" तृतीयखण्डे तु हरिकूटपर्वतप्रस्तावे-"विविहभखपाणगपडिपुना निवेइया विचित्ता ब
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