________________
KIN
नषेधिक्यां भुवनमल्लः
श्रीदे०
मज्म |७| इस संभासिअ पुट्ठो आगमणपओअणं निवेण इमो । भणइ पहु! अस्थि सिरिसेणनिवईधूया रयणमाला ॥८॥ चैत्यश्री
सा कुंदरयणमालासु रयणमाला वरगुणसमेया।जा कुणइ राहवेहं स मे वरोइय कयपइन्ना।।।।राया उ भुवणमल्लं इच्छह सभइणीसुअं धर्म संघा-YAL वरं नवरं । न कुमरि गिरमवमनइ जाणतो कुमरकोसल्लं॥१॥ इअपेसिओ निव! इहं ता कुमरो निववेउ अविलंब । नियदसणामएणं चारविधौ सिरिसेणनरिंदमणनयणे॥११॥ नियइ निवो गणयमुहं तो स भणइ पवरमज जुत्तदिणं । चिंतइ निवो धुवा कुमरभद्दसेणी सविहलग्गा| ॥३७॥ ॥१२॥ यत उक्तम्-"लघूत्थानान्यविघ्नानि,संभवत्साधनानि च । कथयंति पुरः सिद्धिं,कारणान्येव कर्मणाम्॥१३॥"D
मणपवणसउणपरियणअणुकूलत्तेण तो भुवणमल्लो । चंपापुरीहिऽभिमुहं चलिओ चउरंगबलकलिओ॥१४॥ सिद्धत्यपुरसमीवे जा पत्तो ता नरेहिं तप्पहुणा । विनतो जह कीरउ खीरसरवणे इहावासो ॥१५॥ तत्थावसिओ कुमारो नियइ वर्ण विम्हिओ समंता जा। ता पिच्छाइ हयगयरहसुहडसमूह समुहमित॥१६॥ किमियंति कुमरपुट्ठा भणंति सिद्धत्थपुरनिवनराते। न मुणेमु परं संभाविजइ सिरिमूलदेवनिवो ॥१७॥ जं तुम्हागमवत्तायन्त्रणसमया स मन्नइ खणंपि । वरिससमंति इमे जा कहंति ता विनवा वित्ती॥१८॥ सिद्धत्यपुरनिवो पहु ! गयउत्तिनो पएहिं एइत्ति । तो कुमरो अहिंगच्छइ जा पत्तो तास झत्ति तहिं ॥१९॥ अइरूवविजियमारं दटु कुमरं धसत्ति-धरणियले । मुच्छावसा स पडिओ हाहासद्दो पुणुच्छलिओ ॥ २० ॥ कुमरेण ससंभममह चंदणसेयाइणोक्यारेण । संलद्धचेयणो किं वाहइ तुम्हंति सो पुट्ठो ॥२१॥ ओणयवयणो न देइ उत्तरं नियइ चलिरदिट्ठीए । कंडुअई वामकन्नं पायंगुडेण लिहइ भुवं ॥ २२ ॥ किमियंति कुमरपुट्ठो सिरिसेहरमंतिनंदणो सीहो। कुमरवयंसो साहइ पहु! इह न मुणिजई किंपि ॥२३॥ नवरं इओ अरे गम्मिजओ देव! जेण वरनाणी। सिरिअभयघोससूरी समागओ अत्थि इह जो उ ॥२४ । मेरुव
॥३७॥