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भीदें० चै त्यश्रीधर्म ० संघाचार
विधौ
॥ २४ ॥
सुष्णारो पुण तिरिए भमिय तम्भइणि संजाया ॥ १२२ ॥ सा सह रोयड़ थक्का उ-गुज्झलग्गे कयाइ भाउकरे । तह कीलावंतो सो नाओ पियरेहिं निच्छूढो ॥ १२३ ॥ तमह गओ चोरगिरिं भमिरा बाला उ सइरिणी सा उ । कंमि ठिया गांमे सो उ पिल्लिओ तेहि चोरेहिं ॥ १२४ ॥ सा उ सपलि नीआ कयाइ तीए विइज्जिया णीया । तं हणिउं नियइ इमा छिड्डे चोरा गया धाि ||| १२२ || दीसइ किमित्थ पिच्छत्ति भणिय मा पिच्छिरी तहिं मुद्धा । खित्ता कुवे तीए चोराणं पुच्छिराण पुणो || १२६ ।। कहियमिमं कीस न अपणो पियं सारवेद अह तेहिं । नायं गोयम ! एवं इमीइ सा मारियावरई ॥ १२७ ॥ तं दुट्ठचिट्टि द | मेस सा मे ससा ण पाविति । संसइओ सहन्नु मं जणाउ गाउं इहं पत्तो ॥ १२८ ॥ मणपुच्छिरो निसिद्धो तं मे जा सित्ति मउलिअं चैव । लज्जाए पुच्छंतो सा सत्ति गिराड़ जाणविओ ॥ १२९ ॥ भवविलासेयमिय गोयम ! जत्थेवं विसयमोहिया जीवा । विरइसुहमपावंता पार्वति विडंबणं घोरं ॥ १३०॥ पहु देसणमिय सोउं जाया सव्वा सहा पयणुराया । सोउ नरो पवइओ पहुपासे तिवसंवेगो ॥ १३१ ॥ सुदिट्ठपुट्ठउघडसुमरिया बहुअभव मरणदुहया । मा भो विसया भुत्ता वरि विसमुग्गंपि विवरीयं ॥ १३२ ॥ इय तेण वोहिया ते सेसावि इगुणपणसया तेणा । पञ्चइया अह नमिउं मियावई विन्नवइ नाहं ॥। १३३ ।। पज्जो अमणुन्नविडं पडिवजिस्सामि सामि ! पवज्जं । भाइ अवंतीवइमवि तेऽणुनाया गहेमि वयं ।। १३४|| सोऽवि परिसाइ तीए लजाए वारिउं तमतरंतो | अणुमन्नइ सावि तओ सुओति अप्पर उदय से ।। १३५ ।। अंगारवड़प्पमुहाओ अट्ठ पज्जोअअग्गमहिसीओ । सहिआ मियावईए तइआ दिक्खं पवज्जिसु || १३६ || अणुसासिऊण ताओ चंदणबालाइ अप्पिऊण तओ । भवियजणमणाणंदो सामी अन्नत्य | विहरित्था ||३७|| उज्जेणीनाहोऽविहु पहुष्पभावाउ उवसमियवेरो । कोसंबीइ उदयणं ठविय नित्रं नियपुरीइ गओ ||३८|| एवं
परंपराय मृगावती
कथा
।। २४ ।।