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________________ श्रीदे० च धर्म० संघाचारविधौ ॥ २३ ॥ भूरिनर तिरियसुरकोडिसकडाए सुमहयाए । १०५ ॥ सहसभा सासंवादणी वाणीह जोअणगमाए । कम्मक्खयजा इसओ करह पहू देणं एवं || १०६ || "फरिसरसगंधरूवरवलालसा सालसा उ विरईए। पार्वति जिया वहबंघछेयमरणाई बसणारं ॥ १०७ ॥ इह एवं पंचपयारविसयसुहं कंखिरो मया जीवो। अलहंतो विरइमुहं पुणो पुणो भमइ संसारे || १०८||” निवेयकारिणिमिणं सबणामयसारणि अमयसरणिं । पहु करद देसणं जा ता तत्थेगो नरो पत्तो ॥ १०९ ॥ सञ्जीयकयकोदंडो संधियकण्डो पर्यो। आवेसवसविमप्पंतसेयजलसित सवंगो ॥ ११० ॥ मणपुच्छिरो नयसिरो भणिओ पहुणा स पुच्छ भो वयसा । जा सति तओ तेणं पुट्टे मा मत्ति कहइ पट्ट ।। १११ ॥ संमयकोउगकलिओ तत्थ उट्टितु गोयमो भयवं । पणमित्तु पहुं पुच्छड भयकोउगकारि पहु किमि ? | ११२ || जओ - एसो उदंडचंडकोदंड मंडियभुओं भयं जगह । वेरग्गगओ विणण पुच्छिरो पुण महच्छरियं ॥ ११३ ॥ कुंददुदंतपंती फुरंतकरनिपरहरिय तिमिरभरी । अह भणइ भुवणनाहो गोयम ! भवविलसियमिणं तु ॥ ११४ ॥ तं केरिसंति गोयमपुडो भयवं भणइ सुण बच्छ ! । विसयासता सत्ता विडंबणं इह लहंति जहा ॥ ११५ ॥ चंपाऽणंगसेणो सुण्णारो दाउ पंच कणगसए । परिणइ सुरुवकन्नं जा जाया ताण पंचप्रया ॥ ११६ ॥ कारइ तिलगचउद्दम आभरणे देइ न सह परिहेउं । ईसाइ गिहं न मुअइ परस्स न य अल्लिउं देह ॥ ११७|| मित्तेण कयाइ बला नीओ सो पगरणे इओ ताओ। लेकियविभूसियाओ दप्पणहत्था उ विहरंति ||११८|| तेणागरण एगा ना पहया जा मया अहिराओ । इस अम्हाणवि काहिन्ति चिंतिउँ जमगसमगं तं ॥ ११९ ॥ एगूणपंचदप्पणसएहिं मारितु जायअणुतावा । का पड़मारीण गई अम्हं ? होहीह जगनिंदा ॥ १२० ॥ दाराई दाउ जलणं जालित्तु अकामनिञ्जगएऽवि । साणुकोसा मरिडं जाया चोरा गिरिम्भिके || १२१ ॥ जा पदममारिया सा तिरिओ होऊण दियसुओ जाओ । परंपरायां मृगावती कथा ॥ २३ ॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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