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नरसुन्दर
श्रीदे चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥४१५॥
न जए त मज्झ जं दुकरं ॥१०॥ अह भणइ नम्मसचिवो गुरुगलगजिं करेमि जोगिंद!। किं पाडिएहिं उप्पाडिएहिं गहसेलमाईहिं ॥११॥ किंतु मह रूसिऊणं विप्पी गामंमि कमिवि पउत्था।जीइ विणा मे भवणं न केवलं भुवणमवि सुमं ॥१२॥ जइतं आणेसि लई तोऽहं ते सहहेमि सव्वंपि । आगिट्ठिमंतसरणेण जोगिणा अचि अह तत्थ ॥१३॥ समियाविलित्तहत्था कुणमाणी मंडए समाणीया। सा माहणी पहिडो पणच्चिओ नम्मसचिवो तो॥१४॥ गिण्डसु दिक्खं जेणं तयंपि देमो तो निवो मृढो । तपासे तं गिण्हइ | उपइ8 जोगिणा एवं ॥१५॥ नियदेहे वारसअंगुलाई नीहरइ पविसइ दसेव । पवणो तन्निवरीयं जो कुणइ स वंचए कालं ॥१६॥ इय कूडन्भममोहियमणस्स मिच्छत्ततिमिरछन्नस्स । जीववहपमुहआसवपरस्स परलोयविमुहस्स ।। १७ ॥ विम्संभगयस्स निवस्स | तस्स कइयावि भत्तममंमि। विसमविसं दाउ लहुं नहोतुट्टो सयं जोगी॥१८॥ तेणुग्गविसेण निवोऽवि पीडिओ नट्टचेयणो जाओ। हाहारवमुहलमुहा सव्वे मिलिया पुरपहाणा ॥ १९ ॥ आहृया एएहिं सपच्चया मंतवाइणो वहवे । विसनिग्गहोवयारो सव्वपयत्तेण तेहिं को॥२०॥ नवरि स जाओ विहलो तरुणिकडकखुब वीयरायमि । आदरो मंतिजणो भिसं विसनो पुरीलोओ ॥२१॥ अकंदसद्दमुहलं सयलं अंतेउरं तहिं पत्तं । काउं मउत्ति नीओ सिवियं आरोविय मसाणे ॥ २२ ॥ ठविओ चंदणदारुयनिचियाइ | चियाइ जाव ता सहसा । उम्मिीलियनयणजुओ तकालुप्पन्नचेयबो ॥२३॥ चहउँ चियं किमेयंति पभणिओ नरवई तओ सुमई । भणइ तुह देव! दाउं विसमविसं जोगियो नट्ठो॥२४|| विहिया बहूवयारा नय चेयन कहंपि ये जायं। तेण परं जं कीरइ तं काउमिणं समारद्धं ॥२५॥ वणपवणेणवि किह संपयं वयं निविसा इहं जाया ?। इह निवपुट्ठो सुमई भणेइ दइवं वियाणेइ ॥२६॥ | किंतु तवुप्पन्न विसिट्टलद्धिमुणिअंगलग्गपवणेण । अवि जंतूणं जिझंति आमया विसवियारा य ॥२७॥ एयं मे सुयपुवंति मंति
wamimams immitteeminimali Raathham III
MeamILPAPRImmumoumimal