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कथा
श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संचा- चारविधी ॥३७॥
सहिओनर्ण रोरोऽवि चविध ॥ १५॥ किंच-चकित्तं इंदत्तं अहमिदत्तं जणाण इह सुलहं। अकयसुकयाण मDAENTE| उणो जिणिंदवरसासणे पोही ॥ १६ ॥ तो गुरुकरुणारससायरेण गुणसायरेण मुणिवइणा । भणिओ सो महुरगिरा कीस || OI
परितप्पसे १ भद्द! ॥ १७ ॥ जं पुब्बभवञ्जियकडुविवागकम्माण वेयणं मुत्तुं जिनो न अस्थि तक्खवणसंभवो किमिह रुमेण |॥१८॥ सोसिअइ चरममहोयहीवि चालिजइ सुरगिरीवि । नहु छुटिजइ पुन्वजियाउ ता किमिह रुनेण ॥ १९ ॥किर चक्कि
णोऽवि चकं खलिजए वज्जिणोऽवि किर वज्ज । नहु पुचकयं कम्मं केणवि ता किमिह रुनेण ॥२०॥ तो रोयणा पधरिओ | दचो पुच्छइ कहेसु मह भयवं ।। कत्थ कहं वा वोही होही भुज्जो ? भणइ नाणी ॥ २१॥ तं मरिउं रायपुरे पुरोहिघरकुकडीइ
गन्भमि । स्वेण उक्कडो होसि कुक्कुडो भो महाभाग ! ॥२२॥ मुणिदंसणाउ पुब्धि जाई सुमरिय करेवि संनासं । तत्थेव पुरेराया |तं होही ईसरो नाम ॥२३॥ तत्थ य कुसुमुजाणे तमालदलसामलं नवकरुचं । सिरिभाससेणतणयं मातणुसरसिकलहंसं ॥२४॥ | फणिवइचिण्हियचलणं काउस्सग्गे ठियं जिणं पासं । दटुं सरिउं जाई भुज्जो होही तुहं वोही ॥ २५ ॥ एवं सुच्चा दत्तो पहिठ्ठचित्तो दुहेण परिचत्तो। सुमरंतो अहरीकयकप्पतरूं पासजिणनामं ॥२६॥ पासजिणनामसुमरणवसेण खसखासकुट्ठपरिमुक्को। पूर्यतो
य तिसञ्झं जहविहवं पासपहुपडिमं ॥ २७ ॥ निव्वाणगामिणं तिजयसामिणं भाविणंपि पासजिणं । कयपाडिहेरसोई चउतीसा| तिसयपरिकलियं ॥२८॥ वाणीए जोयणगामिणीइ बोहं नयति जयलोयं । एगग्गमणो सुमणो झायंतो निचमुवउत्तो ॥२९॥
वरनाणिकहियविहिणा भो मंतिस एसऽहं इहं जाओ। सिरिपासदसणाओ संपत्तो जाइसरणं च ॥३०॥ पुन्वभवे नामठवणदव्वभावा|रिहंतसरणेण । अज्जियगुरुपुन्ने पत्र मे चोहिवररयणं ॥३॥तो कुक्कुडेसराभिहमीसरराया पमोयभरभरिओ। कारावइ जिण- ॥३७७||
RANEPAL