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________________ INSE चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३०५॥ यलविसारिदुंदुहिसरेण । इह अट्ठावयसेले सिरिरिसहजिणो समोसरिओ॥१२॥ तं सोउ हतद्वो अद्धचेरस सुवनकोडीओ।। पीईदाणं दलयइ भरहो विचिस्स तस्स तओ ॥१३॥ सह अंगरक्खलक्खेहि अंगरक्खेहिं तह य जक्खेहि । सोलसहिं सहस्सेहि य परियरिओ सहसकिरणोन्च ॥१४॥ देसाण विमाणाणव सामीणं मउडबद्धराईणं । बत्तीससहस्सेहिं सेवियो सहसनयणोच ॥१५॥ रयणेहिं चउद्दसहि मणोरमेहिं विरायमाणो सो। कयदेहसंगहोविव जंबुद्दीवो महनईहि ॥१३॥ तत्थ-चम्ममणिकागिणी सिरिहरम्मि दंडासिचकछत्ताणि । जायाणि आउहगिहे इस सत्तेगेंदिरयणाणि ॥१७॥ उत्तरसेढीए थीरयणं हयगय वियगिरिमृले । सेणावद गाहावइ पुरोहि वह विणीयाए ॥१८॥ पयतलगेहि निहीहि य विहरंतजिणुच नवहिं कमलेहिं । तिसरहिं तिसद्देहि य सूवेहि दिणेहिं वरिसोव्व ॥१९॥ बत्तीसहि लक्खेहिं बत्तीसतिबद्धपवरनट्टाणं । तह निववरकन्नागं जणवयकल्लाणयाण तहा ॥२०॥ हयगयरहाण चुलसीलक्खेहि छन्नतिकोडीहें । पाईकाण तहट्ठारसेहिं सेणिप्पसेणीहिं ॥ २१॥ अन्नेहिवि राईमरवलवरको९विसिढिमाईहिं । परियरिओ मरहनिवो नमणत्थं निग्गओ नयरा ॥ २२॥ पविसित्तु समोसरणे विहीऍ भरहो नमिय जयनाई । सुगइ इय सयलमलसलिलसंनिहं देसणं पहुणो ॥ २३ ॥ "भत्तिबहुमाणपूयाथुइसेवानमणवंदणाईहिं । लहइ जिणाईण जिओ तित्थयर-1 चाइवररिद्धी ॥२४॥ नियमइ य तित्थगुत्तं नियमा मणुओ तिहावि सुहलेसो। आसेविएहिं बहुसो वीसाए अभयरएहि ॥२५॥ जओ-जिण १ सिद्ध २ पवयण ३ गुरू ४ थेर ५ बहुस्सुय ६ तबस्सी ७ वच्छलं । नाणु ७ वओगो ८ दंसण ९ विनया१०वसयविहि ११ सीलवयं १२॥३०॥ अणइक्कमो खणलव १३ तव १४ चय १५ वेयावच्च १६ विहिसमाही य १७ । अप्पुव्व-10 | नाणगहणं १८ सुयमति १९ पभावणा वीसं २० ॥३१॥ अह नरवइणा पुट्ठो पहू कहित्थित्य मावजिणचक्की। तहय अपुढे IMIRDPMINISIw ॥३०५॥ a l
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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